देहरादून: राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। विधानसभा चुनाव नजदीक है। यह पहले से ही कयास लगाए जा रहे थे कि नामांकन से पहले उत्तराखंड की सियासत में कुछ बड़ी हलचल देखने को मिल सकती है, और हुआ भी कुछ ऐसा ही। अपनी बहू और खुद के लिए टिकट मांग रहे हरक सिंह रावत को भाजपा ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। फैसला भले ही अब लिया गया हो, लेकिन इसकी पटकथा कई दिनों से भीतर-भीतर लिखी जा रही थी।
भाजपा शायद हरक के रुख को भांप चुकी थी। भाजपा को लगने लगा था कि हरक कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं। ऐसे में पार्टी ने हरक के अगले कदम से पहले अपना फैसला सुना दिया। हरक को भाजपा ने 6 साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। हरक राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं, इसमें कोई दोराय नहीं है। हरक के राजनीतिक जीवन में कई तरह के उतार-चढ़ाव आए, लेकिन हरक कभी डिगे नहीं। अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने बसपा से लेकर भाजपा और फिर कांग्रेस में रहते विभिन्न पदों की जिम्मेदारी निभाई। विवादों में घिरे, बुरी तरफ फंसे, लेकिन फिर बाहर भी निकल आए। हरक यह कला भी जानते हैं कि कब आंसू बहाने हैं और कब हंसाना है।
पौड़ी में जन्मे हरक सिंह रावत की प्रारंभिक शिक्षा पौड़ी से हुई और राजनीतिक सफर की शुरुआत भी। स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने वाले हरक सिंह रावत ने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति में पदार्पण किया। और 1984 में पहली बार भाजपा से पौड़ी सीट के लिए चुनावी मैदान में ताल ठोकी। लेकिन, इस चुनाव में हरक को हार का सामना करना पड़ा। तब उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था।
1991 हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर भाजपा से ही हरक सिंह रावत ने पौड़ी विधानसभा सीट के से फिर मैदान में उतरे। इस बार हरक सिंह रावत ने जीत हासिल की। हरक उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने पर्यटन राज्य मंत्री बने। और इस तरह हरक सिंह रावत सबसे कम उम्र के मंत्रियों मे शुमार हुए।
साल 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में भी हरक सिंह रावत सियासी रण में उतरे। पौड़ी विधानसभा सीट पर ही चुनाव लड़ा और जनता ने दूसरी बार भी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व हरक को ही सौंपा। पौड़ी विधानसभा सीट में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले हरक सिंह रावत ने 1998 में भाजपा का दामन छोड़ दिया। और इसकी वजह टिकट न मिलना बताई गई।
भारतीय जनता पार्टी का दामन छोड़ने वाले हरक सिंह रावत इसी साल बहुजन समाज पार्टी की नाव में सवार हो गए। लेकिन, इस बार पौड़ी सीट से हार का मुह देखना पड़ा। हार का सामना करने पर भी हरक ने रुद्रप्रयाग ज़िले के गठन के साथ कई कार्यों से जनता के बीच अपनी छाप छोड़ी। लेकिन, बसपा में उनका सफर ज्यादा लंबा नही रहा। वक्त के साथ हरक सिंह ने कांग्रेस में जाना जरुरी समझा।
साल 2002 जब उत्तराखंड राज्य दो वर्ष का हो चुका था। राज्य गठन के बाद पहले विधानसभा चुनाव की प्रदेश मे तैयारी चल रही थी। इस तैयारी में हरक सिंह रावत ने अपनी दावेदारी लैंसडाउन से पेश की । और जनता का भरपूर समर्थन भी हरक को मिला। विधायक बनने के साथ ही, हरक पहली कैबिनेट के लिए मंत्री भी चुने गए।
पांच साल की विधानसभा का समय पूरा हुआ और तैयारी 2007 के विधानसभा चुनाव की। इस बार भी हरक लैंसडाउन से ही प्रत्याशी घोषिए हुए।और जीत का स्वाद चखने में भी कामयाब रहे। दूसरी विधानसभा का कार्यकाल भी प्रदेश में सफल हुए। अब तैयारी 2012 के विधानसभा चुनाव की थी, जिसमें हरक ने रुद्रप्रयाग विधानसभा सीट को खुद के लिए मुफिद माना और जीत भी हासिल की।
15 साल कांग्रेस में रहने के बाद 2016 में हरक के सुर कांग्रेस मे बगावत के हुए। और हरक भाजपा में घर वापसी की। लेकिन इस घर वापसी में हरक अकेले नही थे। अपने साथ 9 और नेताओं को भी हरक सिंह रावत अपने साथ भाजपा में लेकर गए। हरीश रावत की सरकार को गिरा गिया। राष्ट्रपति शासन लगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद हरदा फिर बतौर सीएम फिर बहाल हुए।
भाजपा में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले हरक सिंह रावत ने 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए अपने तेवर बदले। कैबिनेट बैठक में कोटद्वार मेडिकल कॉलेज का मसला सुलझने के बाद भी, हरक की बगावत भाजपा झेल ना सकी। इस वजह से भाजपा हाई कामान ने हरक को 16 जनवरी 2022 को 6 सालों के लिए भाजपा पार्टी में अनुशासनहिता के चलते निष्कासित किया।
हरक का सफर
- छात्र राजनीति से सक्रिय हुए हरक.
- 1984 में भाजपा ने पौड़ी से दिया टिकट, मिली हार.
- 1991 मे फिर आज़माई किस्मत, जनता ने दिया साथ.
- 1998 मे भाजपा छोड़ बसपा का थामा हाथ.
- बसपा में नहीं चले तो हरक कांग्रेस में हो गए शामिल.
- राज्य गठन में 2002 के पहले रण में उतरे हरक.
- 15 साल के बाद 2016 मे कांग्रेस से हुए बागी.
- 2022 में भाजपा से हुए हरक निष्कासित.