लॉकडाउन के दौरान लंबे समय तक घरों में बंद रहने और वर्कआउट न करने के चलते कई लोगों का वजन बढ़ गया। इस दौरान कई लोग तनाव का शिकार हो गए। नौकरी छूटने और व्यापार में नुकसान के कारण कई व्यापारी डिप्रेशन में आ गए थे। वहीं इस दौरान मोटापा के मरीजों की संख्या में बड़ी तेजी से बढ़ी। इससे मधुमेह के मरीजों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। इस बात की पुष्टि एक नवीनतम शोध से होती है।
आपको बता दें कि शोध में खुलासा हुआ है कि महामारी के दौरान न केवल लोग मोटापा के शिकार हुए हैं, बल्कि मोटापे से पीड़ित लोगों में मधुमेह तेजी से बढ़ रही है। आसान शब्दों में कहें तो महामारी के दौरान जिन लोगों का वजन बढ़ा है। उनमें अधिकांश लोगों को डायबिटीज भी हुई है।
मीडिया रिपोर्ट् के अनुसार लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी में छपी एक शोध की मानें तो एनएचएस मधुमेह रोकथाम कार्यक्रम में 40 वर्ष से कम आयु के लोगों ने नामांकन के दौरान वजन बढ़ने की शिकायत की है। महामारी से पहले नामांकन करने वालों लोगों का वजन वर्तमान समय की तुलना में औसतन 8 पाउंड कम रहा है। इससे स्पष्ट है कि मोटे आदमियों को डायबिटीज का खतरा अधिक है। इस शोध से यह भी पता चला कि 1 किलो वजन बढ़ने से डायबिटीज का खतरा 8 प्रतिशत बढ़ जाता है।
साथ ही शोध में यह दावा किया गया है कि वर्तमान दर से डायबिटीज के मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई, तो साल 2035 तक लगभग 39,000 लोगों को दिल का दौरा पड़ सकता है और 50,000 लोगों को स्ट्रोक यानी मस्तिष्काघात हो सकता है। इस बारे में और अधिक जानकारी देते हुए एनएचएस के राष्ट्रीय नैदानिक निदेशक और प्रोफेसर Jonathan Valabhji ने कहा कि वजन बढ़ने का मतलब डायबिटीज का खतरा बढ़ना भी है, जो कई अन्य बीमारियों-कैंसर, स्ट्रोक, अंधापन, हार्ट अटैक से जुड़ा है।