चारधाम में शामिल बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखंड के साथ ही पूरे देश में प्रसिद्ध है। बद्रीनाथ धाम के दर्शन के लिए देश-विदेशों से श्रद्धालु उत्तराखंड आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो जाए बद्री, वो ना आए ओदरी यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ के एक बार दर्शन कर लेता है उसे फिर उदर मतलब मां के गर्भ में नहीं आना पड़ता है। उत्तराखंड में भगवान विष्णु को बद्री के रूप में पूजा जाता है। क्या आप जानते हैं की उत्तराखंड में भगवान बद्री का सिर्फ एक ही धाम नहीं है बल्कि उत्तराखंड में पूरा बद्री क्षेत्र है जहां भगवान बद्री को समर्पित पांच मंदिर हैं जिन्हें पंचबद्री (Panch Badri ) की संज्ञा दी जाती है।
1. विशाल बद्री या बद्रीनाथ (Badrinath)
उत्तराखंड में स्थित पंच बद्री में से सबसे बड़ा तीर्थ बद्रीनाथ को ही माना जाता है जिसे विशाल बद्री कहते हैं।
चमोली में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित विशाल बद्री में भगवान विष्णु ध्यान मुद्रा में विराजमान हैं। जिस कारण माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु छह महीने निद्रा में रहते हैं और छह महीने जागते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक एक बार यहां भगवान विष्णु घोर तपस्या में लीन थे। तभी इस जगह पर हिमपात शुरु हो गया। जिसे देख कर माता लक्ष्मी विचलित हो गईं।
भगवान विष्णु की तपस्या में कोई बाधा उत्पन्न ना हो ये सोचकर बेर जिसे बद्री भी कहते हैं, उसके वृक्ष में परिवर्तित हो गई। भगवान विष्णु को कठोर मौसम से बचाने के लिए उन्हें अपनी शाखाओं से ढक लिया। तपस्या खत्म होने के बाद जब भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को बेर के वृक्ष रूप में देखा तो उन्होंने माता लक्ष्मी से कहा कि देवी आपने मुझसे अधिक तप किया है इसलिए मुझसे पहले आप पूज्य हैं। तभी से इस मंदिर को बद्रीनाथ नाम से जाना जाने लगा।
2. आदि बद्री (Aadi Badri)
कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदी बद्री भगवान विष्णु का सबसे पहला निवास स्थान माना जाता है। बद्रीनाथ से पहले आदि बद्री कि ही पूजा की जाती है। किसी जमाने में आदि बद्री मंदिर 16 मंदिरों का समूह हुआ करता था लेकिन अब यहां सिर्फ 14 मंदिर रह गए हैं।
कहा जाता है भगवन विष्णु यहां तीन युगों से यहां रह रहे थे लेकिन जैसे ही कलयुग आया वे ये स्थान छोड़ कर बद्रीनाथ धाम चले गए। मान्यता के अनुसार बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने से पहले आदी बद्री के दर्शन करने जरुरी होते हैं तभी बद्रीनाथ की यात्रा सफल होती है। ऐसा भी कहा जाता है ये वो जगह है जहां महर्षि वेदव्यास ने गीता लिखी थी लेकिन इसका कोई ठोस प्रमाण देखने को नहीं मिलता है।
3. योगध्यान बद्री (Yog Dhayan Badri)
बद्रीनाथ ऋषिकेश राजमार्ग पर स्थित पांडुकेश्वर में अलकनंदा की गोद में बसा ये धाम खुद में महाभारत युद्ध के नायकों के जन्म की कहानी भी लिए हुए है। कहा जाता है ये वही जगह है जहां पांडवों का जन्म हुआ था और राजा पाण्डु को मोक्ष मिला था। इस जगह के पास एक सूर्य कुंड है जिसे लेकर मान्यता है की यहीं पर कुंती ने अपने सबसे बड़े बेटे कर्ण को जन्म दिया था।
इस धाम में भगवान विष्णु की मूर्ति ध्यान मुद्रा में स्थापित है इसलिए इस जगह को योग ध्यान बद्री के नाम से जाना जाता है। बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद भगवान बद्री का शीतकालीन निवास योगध्यान बद्री ही है। यहीं पर शीतकाल में भगवान बद्री की पूजा की जाती है।
4. वृद्ध बद्री (Vridha Badri)
चमोली के अनिमठ गांव में स्थित वृद्ध बद्री को भगवान बद्री के तीसरे निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। पुराणों में इस जगह को परम विष्णु भक्त नारद मुनि की तपस्थली माना जाता है। कहा जाता है कि एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु की भक्ति में लीन होकर यहां तप कर रहे थे जिससे भगवान विष्णु काफी खुश हो गए और उन्होंने इसी जगह पर देवर्षि नारद को एक वृद्ध व्यक्ति के रुप में दर्शन दिए। तभी से यहां श्री हरी विष्णु वृद्ध रुप में पूजे जाने लगे। आपको बता दें कि जहां एक तरफ भगवान बद्री के अन्य मंदिर शीतकाल में बंद हो जाते हैं वहीं ये मंदिर भक्तों के लिए साल भर खुला रहता है।
5. भविष्यबद्री (Bhavishya Badri)
कलयुग में आप जिस बद्रीनाथ में दर्शन कर रहे हैं भविष्य में आप उनके दर्शन यहां पर नहीं कर पाएंगे। ऐसा कहा जाता है कि भविष्य में भगवान बद्री किसी और जगह पर अपने दर्शन देंगे और वो स्थान है भविष्य बद्री। भविष्य बद्री के बारे में कहा जाता है कि यहां ऋषि अगस्त्य ने भगवान् विष्णु की तपस्या की थी और तब से भगवान विष्णु भविष्य बद्री के रूप में यहीं निवास करने लगे।
यहां एक शिला है जिसे लेकर मंदिर के पुजारियों का मानना है कि इसमें धीरे-धीरे भगवान विष्णु की आकृति उभर रही है। जिसे अभी तो साफ़-साफ़ देख पाना मुमकिन नहीं है। लेकिन उनका मानना है कि जिस दिन ये आकृति पूरी तरह से उभर जाएगी उस दिन से भगवान विष्णु भविष्यबद्री में ही पूजे जाएंगे।
भविष्यबद्री को लेकर की गई भविष्यवाणी का उल्लेख ‘सनत संहिता’ में मिलता है। ‘सनत संहिता जो एक प्राचीन पाठ है उसमें साफ-साफ लिखा है कि जब जोशीमठ में नरसिंह मंदिर में स्थित भगवान नरसिंह की मूर्ति का हाथ गिर जाएगा और विष्णुप्रयाग के पास जय और विजय के पहाड़ ढह जाएंगे तो बद्रीनाथ का वर्तमान मंदिर दुर्गम हो जाएगा। जिसके बाद भगवान बद्रीनारायण के रूप में भगवान विष्णु की आराधना भविष्य बद्री में शुरू होगी।
2024 में बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि
बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि और शुभ मुहूर्त बसंत पंचमी के मौके पर तय कर दी गई है। हिन्दू धर्म में चारधाम यात्रा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। हर साल एक निश्चित अवधि के लिए चार धाम यात्रा का शुभारंभ होता है। जिनमें से बद्रीनाथ धाम यात्रा को विशेष माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बद्रीनाथ धाम को भगवान विष्णु का प्रमुख निवास स्थल माना जाता है।
इस साल बद्रीनाथ धाम के कपाट 12 मई 2024 (रविवार) को सुबह छह बजे ब्रह्ममुहूर्त पर खुलने जा रहे हैं। बता दें बसंत पंचमी के मौके पर नरेंद्रनगर टिहरी स्थित राजदरबार में कपाट खुलने की तिथि की घोषणा की गई। बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि तय करने की प्रक्रिया के लिए गाडूघड़ा (तेल-कलश) श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर डिम्मर से मंगलवार शाम बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के चंद्रभागा स्थित विश्राम गृह पहुंच गया था।