आशीष तिवारी। उत्तराखंड में फौजियों पर सियासी डोरे डालने का काम जारी है। अरविंद केजरीवाल के फौजी सीएम इन वेटिंग के बाद अब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी सैनिक सम्मान कार्यक्रम के जरिए फौजियों के बीच पार्टी की जगह बनाए रखने की कोशिश की है।
दरअसल उत्तराखंड में फौजी परिवारों से जुड़े वोटर्स की बहुतायत है। उत्तराखंड के तकरीबन 78 लाख वोटर्स के बीच दस लाख के करीब फौजियों और उनके परिवारों के वोट हैं। जाहिर है कि ये एक बड़ी संख्या है और जिस पार्टी के साथ खड़ी हो जाए उसकी जीत तय है। उत्तराखंड के कई ऐसे जिले हैं जहां सैनिकों और वीर नारियों की संख्या बहुतायत में है। मसलन देहरादून, पौड़ी और पिथौरागढ़ में पूर्व सैनिक और वीर नारियों की संख्या बीस हजार से ऊपर है। वहीं अल्मोड़ा, बागेश्वर, नैनीताल और चमोली में ये संख्या 15 हजार के आसपास टिकती है।
तीन जिले, बीस सीटें, खेला यहीं हैं
पिथौरागढ़ जिले में विधानसभा की चार सीटें आती हैं- धारचुला, डीडीहाट, पिथौरागढ़ और गंगोलीहाट। वहीं देहरादून जिले में कुल दस विधानसभा सीटें हैं – चकराता, विकासनगर, सहसपुर, धर्मपुर, रायपुर, राजपुर रोड, देहरादून कैंट, मसूरी, डोईवाला, ऋषिकेश। पौड़ी गढ़वाल जिले में कुल छह सीटें आती हैं- यमकेश्वर, पौड़ी, श्रीनगर, चौबट्टाखाल, लैंसडाउन, कोटद्वार। इस हिसाब से देखें तो तीन जिलों में ही कुल बीस सीटें आ जाती हैं।
एक दिलचस्प तथ्य और देखिए। पिथौरागढ़ में पिछले चुनावों में सभी चार सीटों पर जीत का अधिकतम मार्जिन 3085 वोट था। ये सीट है धारचूला जिसे कांग्रेस के हरीश धामी ने जीता है। बाकी की तीन सीटें बीजेपी के पास हैं और वहां जीत का मार्जिन कांग्रेस की जीत के मार्जिन से कम है। गंगोलीहाट हाट पर बीजेपी की मीना गंगोला महज 805 वोटों के मार्जिन से जीत कर आईं हैं।
वहीं देहरादून में दस सीटों पर जो मार्जिन रहा उसमें प्रीतम सिंह महज 1543 वोटों के मार्जिन से जीत कर आए हैं। हालांकि इसके बाद बची नौ सीटों पर जीत का मार्जिन पांच हजार वोटों से अधिक का रहा है। यहां 2017 के चुनावों में बीजेपी को कुल नौ सीटें मिली और कांग्रेस को महज एक।
गढ़वाल की छह सीटों में से सभी छह सीटें बीजेपी के पास हैं और यहां जीत का मार्जिन छह हजार से ऊपर का है। यहां सैनिक बाहुल्य अधिकता में है और इसपर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है। गौरतलब है कि 2017 के चुनावों में खुद नरेंद्र मोदी ने यहां एक रैली की थी और इसी का नतीजा रहा कि यहां बीजेपी जीत कर आई। बीजेपी के प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने में इन बीस सीटों में से मिलीं कुल 18 सीटों का अहम योगदान रहा है।
सरकार का दावा होता है मजबूत
महज तीन जिलों के आंकड़ों को तथ्यों के आधार पर देखें तो इस लिहाज से फौजी वोटर्स उत्तराखंड में निर्णायक भूमिका में रहतें हैं। इन बीस सीटों के बाद बची पचास सीटों पर लड़ाई में अगर किसी पार्टी को 15 सीटें भी मिल जाती हैं और उसे इन तीन जिलों में ही फौजी परिवारों का साथ मिल जाता है तो सरकार का दावा मजबूत हो जाता है।
इस सियासी गणित को सभी राजनीतिक पार्टियां समझती हैं। लिहाजा उनका निशाना सीधे तौर सबसे पहले यही वोटर्स होते हैं। जेपी नड्डा भी इसी लकीर पर आगे बढ़ रहें हैं। फिलहाल आना वाला समय फौजियों और उनके परिवारों के फैसले पर निर्भर करता है। लेकिन इतना जरूर है कि इस बार फौजी परिवारों का वोट बंटना तय है। बीजेपी और आप ने फौजियों को लेकर जो रणनीति बनाई कहीं ऐसा न हो कि उसका फायदा कोई ‘तीसरा’ उठा ले जाए।