Dehradun : उत्तराखंड: प्रतिनिधित्व से दूर आधी आबादी, आज तक नहीं बन पाई महिला विधायक - Khabar Uttarakhand - Latest Uttarakhand News In Hindi, उत्तराखंड समाचार

उत्तराखंड: प्रतिनिधित्व से दूर आधी आबादी, आज तक नहीं बन पाई महिला विधायक

Reporter Khabar Uttarakhand
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away from representation

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देहरादून: देहरादून उत्तराखंड बनने के बाद राज्य की अस्थाई राजधानी बना। राजधानी बनने से पहले भी देहरादून देश-दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र रहा। राज्य बनने से पहले देहरादून में तीन सीटें मसूरी, चकराता और देहरादून शामिल थी। इनकी संख्या अब 10 तक पहुंच गई है। महिला सशक्तिकरण के तमाम दावे किए जाते हैं, लेकिन जब तक राजनीति में प्रतिनिधित्व की बात है, वहां महिलाओं को हमेशा से ही नकारा जाता रहा है।

राज्य आंदोलन में महिलाओं के बलिदान और उनकी भूमिका का गवाह इतिहास है। महिलाओं ने कुर्बानी देकर राज्य हासिल किया। लेकिन, उनकी हिस्सेदारी राज्य के राजनीतिक फलक भी बहुत कम रही है। केवल राजधानी बनने के बाद ही नहीं, बल्कि 1952 से आज तक एक भी महिला विधायक नहीं बन पाई हैं।

बावजूद इसके आज तक एक भी महिला प्रत्याशी जीतकर विधानसभा नहीं पहुंची। ऐसा भी नहीं है कि महिलाओं ने चुनाव न लड़ा हो। राज्य बनने के बाद से 2017 तक देहरादून में 45 महिलाएं चुनाव लड़ चुकी हैं लेकिन इनमें से एक भी जीत नहीं दर्ज कर पाई। देहरादून में वोटरों के रूप में महिलाओं की बात करें तो वर्ष 2002 में महिला मतदाताओं की संख्या 3.57 लाख, 2007 में 4.75 लाख व 2012 में 4.93 लाख थी। वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में देहरादून में महिला वोटर की संख्या 6.46 लाख थी।

देहरादून में 1952 से अभी तक 66 महिलाएं चुनाव लड़ चुकी हैं, जबकि राज्य में यह संख्या 305 के करीब है। पहली बार वर्ष 1977 में महिला प्रत्याशी के रूप में राजकुमारी निर्दलीय चुनाव लड़ी थीं। उनको मात्र 134 वोट मिले थे जबकि उस वक्त महिला वोटरों की संख्या 27155 थी। सबसे अधिक 15 महिलाएं वर्ष 2002 में चुनाव लड़ी थीं।

ऐसा नहीं है कि महिलाओं ने चुनाव नहीं लड़ा। 1952 से 2017 तक 66 महिलाएं देहरादून में चुनाव लड़ चुकी हैं। लेकिन, हर बार महिलाओं को मात खानी पड़ी। इससे एक बात तो साफ है कि महिलाओं को नेतृत्व देने में कितनी हिचक है। सवाल यह है कि आखिर क्यों महिलाओं पर भरोसा नहीं किया जा रहा है।

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