उत्तराखंड के जनकवि Girish Tiwari Girda की आज पुण्यतिथि है। गिरीश तिवारी ‘गिर्दा‘ उत्तराखंड आंदोलन के जनकवि थे। इनके शब्द सीधे लोगों के दिलों को छू जाते थे। उनकी कविताएं आज भी लोगों को पहाड़ों से जोड़ती हैं। उनकी कविताओं में पहाड़ का वर्णन इतना मार्मिक था कि लोग उनसे सीधे दिल से जुड़ते थे।
अल्मोड़ा में जन्मे थे Girish Tiwari Girda
Girda का पूरा नाम Girish Tiwari Girda था। उनका जन्म 10 सिंतबर 1945 को उत्तराखंड अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लॉक में ज्योली गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम सादत्त तिवारी और माता का नाम जीवंती देवी था। उनकी आरंभिक शिक्षा अल्मोड़ा से हुई थी। जबकि उन्होंने 12वीं की परीक्षा नैनीताल से पूरी की।
मोहन उप्रेती और बृजेन्द्र लाल शाह रहे प्रेरणा स्त्रोत
तत्कालीन संस्कृति कर्मी, रंगकर्मी मोहन उप्रेती और बृजेन्द्र लाल शाह इनके प्रेरणा स्त्रोत बने। पढ़ाई पूरी करने के बाद गिरीश तिवारी गिर्दा, घर से निकल कर पीलीभीत चले गए। उसके बाद वो बरेली और फिर लखनऊ में रहे।
उन्होंने अलीगढ़ में रिक्शा चलाने काम भी किया। इस दौरान उनकी मुलाकात कुछ वामपंथी मजदूर संगठनों से हुई। वहीं से इनको गरीबो और वंचितों को समझने और जानने का मौका मिला।
कुमाऊंनी कविताओं को लिखना ऐसे किया शुरू
कुछ समय लखनऊ में अस्थाई नौकरी करने के बाद गिर्दा ने साल 1967 में गीत और नाटक प्रभाग में स्थाई नौकरी की। इस दौरान उनका लखनऊ आकाशवाणी में भी आना-जाना हुआ। इसके साथ ही उन्होंने लिखने शुरू किया और पंत,फैज,निराला,ग़ालिब, आदि कवियों और लेखकों को अध्ययन किया।
इसके बाद गिर्दा ने खुद कविताएं लिखना शुरू किया। साल 1968 में गिर्दा ने ‘शिखरों के स्वर’ किताब को प्रकाशित किया। जो कि कुमाऊंनी कविताओं का संग्रह था। जिसके बाद उन्होंने कई किताबें और नाटक भी लिखे।
दिल को छू जाती थी Girda की कविताएं
गिर्दा को उत्तराखंड के आजादी के आंदोलन का जनकवि कहा जाता है। उनकी रचनाएं और उनकी आवाज सीधे दिल को छू जाती थी। उन्हें सुनने के बाद उनकी कविताएं पढ़ने के बाद लोग उनसे जुड़ जाते थे। उत्तराखंड राज्य आंदोलन जब चल रहा था तो गिर्दा से कई लोग जुड़ रहे थे। आंदोलन तेज हुआ तो Girda के गीत भी उसी तेजी से आंदोलन की आवाज बने। उस समय जहां भी प्रदर्शन या आंदोलन होते वहाँ गिर्दा के गीतों की गूंज सुनाई पड़ती।
Girish Chandra Tiwari की मृत्यु
लोगों के दिलों पर अपनी कविताओं और अपनी आवाज से राज करने वाले जमीन से जुड़े Girish chandra tiwari की मृत्यु 22 अगस्त 2010 को पेट मे अल्सर की बीमारी के कारण हुई। 2010 में उत्तराखंड के जनकवि ने शरीर तो त्याग दिया लेकिन अपनी रचनाओं से वो अब भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
गिर्दा की कुछ प्रमुख कविताएं
यूं तो गिर्दा की कई कविताएं हैं लेकिन कुछ ऐसी हैं कि आज भी लोग उन्हें सुनते हैं तो पूरा सुनने से खुद को रोक नहीं पाते। उत्तराखंड राज्य परिकल्पना के लिए उनके द्वारा एक गीत लिखा गया –
ततुक नी लगा उदेख
घुनन मुनई नि टेक
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
जैं दिन कठुलि रात ब्यालि
पौ फाटला, कौ कड़ालौ
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
जै दिन चोर नी फलाल
कै कै जोर नी चलौल…
उत्तराखंड मेरी मातृभूमि… मातृभूमि मेरी पितृभूमि ये गीत आज उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में प्रार्थना में बच्चों द्वारा गाया जा रहा है। ये रचना गिरीश तिवारी गिर्दा की प्रमुख रचनाओं में से एक है।
उत्तराखंड मेरी मातृभूमि, मातृभूमि यो मेरी पितृभूमि ,
ओ भूमि तेरी जय जय कारा… म्यर हिमाला
ख्वार में कूट तेरो ह्युं झलको ,
छलकी गाड़ गंगा की धारा… म्यर हिमाला
साल 2008 में फिर उन्होंने एक ऐसी कविता की रचना की जिसने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। 2008 में प्रदेश में नदी बचाओ आंदोलन चला तो उन्होंने पानी के व्यापारी कविता लिखी। ये कविता लिखी तो बहुत पहले गई थी लेकिन आज की परिस्थितियों पर ये बिल्कुल सटीक बैठती है। जोशीमठ आपदा के दौरान ये कविता फिर से काफी वायरल हुई। लोगों ने कहा कि ऐसा लगता है गिर्दा ने आज की स्थिति को देखकर ही ये कविता लिखी हो।
“अजी वाह! क्या बात तुम्हारी
तुम तो पानी के व्योपारी
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी
बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी
सारा पानी चूस रहे हो
नदी-समन्दर लूट रहे हो
गंगा-यमुना की छाती पर
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो
उफ! तुम्हारी ये खुदगर्जी
चलेगी कब तक ये मनमर्जी
जिस दिन डोलगी ये धरती
सर से निकलेगी सब मस्ती
महल-चौबारे बह जायेंगे
खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूँद-बूँद को तरसोगे जब
बोल व्योपारी-तब क्या होगा?