Jageshwar Dham Uttarakhand: यूं तो सनातन धर्म में शिव के स्वरूप की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि शिवलिंग की पूजा धरती पर किस स्थान से और कैसे प्रारम्भ हुई? देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के जागेश्वर धाम से धरती पर शिवलिंग की पूजा शुरू हुई।
जागेश्वर धाम (Jageshwar Dham) से शुरू हुई शिवलिंग की पूजा
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से 40 km की दूरी पर शिव का पावन धाम जागेश्वर मंदिर समूह बसा है। जहाँ पर साक्षात शिव विराजते हैं। बद्रीदत्त पांडे की पुस्तक कुमाऊँ का इतिहास के अनुसार सप्त ऋषियों के श्राप के कारण शिव का लिंग कट कर जागेश्वर में गिर गया।
जिसके बाद विष्णु ने अपने सुदर्शन से शिवलिंग के टुकड़े कर पूरे भारत के कोने-कोने में बाँट दिए। तभी से माना जाता है कि जागेश्वर में ही दुनिया के सबसे पहले शिवलिंग की उत्पत्ति हुई और यहीं से शिवलिंग की पूजा और दर्शन करने का प्रचलन भी प्रारम्भ हुआ था।
9वीं से 13वीं सदी के बीच हुआ जागेश्वर मंदिर समूह का निर्माण
उत्तर भारतीय नागर शैली के बने इस जागेश्वर धाम मंदिर (jageshwar dham mandir) समूह का निर्माण 9वीं से 13वीं सदी के बीच माना गया है। जब उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य का दौर था तब हिमालय की पहाडियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरी राजा राज किया करते थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ है। जागेश्वर मंदिर समूह में लगभग 250 मंदिर हैं जिसमें एक ही स्थान पर छोटे बड़े 224 मंदिर निर्मित हैं।
इन सभी मंदिरों को पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं को काटकर और तराशकर बनाया गया है। मंदिर के दरवाजों की चौखटों में देवी-देवताओं की प्रतिमाएं लगी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि जागेश्वर मंदिर के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकड़ी का भी प्रयोग हुआ है। जागेश्वर मंदिर समूह के बड़े मंदिरों में शिखर के ऊपर लकड़ी की छत लगाई गई है जिसे स्थानीय भाषा में बिजौरा कहा जाता है और यही इस शिल्प की विशेषता भी है।
जागेश्वर मंदिर (Jageshwar mandir) को पुराणों में हाटकेश्वर नाम से है जाना जाता
बता दें कि जागेश्वर मंदिर Jageshwar mandir को पुराणों में हाटकेश्वर और भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूण के नाम से जाना जाता है। योगियों के योग के कारण इसे ‘यागेश्वर’ का नाम मिला है। इसके साथ ही यहां शिवरात्रि के महापर्व व श्रावण में पार्थिव पूजा जैसे अवसरों पर लगने वाले मेलों के वजह से इसे ‘हाटेश्वर’ भी कहा जाता है। कुछ लोग इसे नागेश्वर मंदिर भी कहते हैं।
केदारनाथ जाने से पहले जागेश्वर आये थे शंकराचार्य
केदारनाथ धाम जाने से पहले जागेश्वर धाम Jageshwar Dham में शंकराचार्य ने भगवान शिव के दर्शन किए थे। इसके साथ ही उन्होंने कई मंदिरों का जीर्णोद्धार और स्थापना की थी। माना जाता है कि जागेश्वर धाम में खुद भगवान शिव ने अनादिकाल तक तपस्या की थी।
भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी
श्रावण के महीने में यहाँ पूरे महीने मेला लगता है। इस मेले में दूर दराज़ से भक्त आकर यहाँ पार्थिव पूजा करवाते हैं।
पौराणिक कथाओं तथा शिव पुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण में भी जागेश्वर धाम का वर्णन देखने को मिलता है.
यहाँ सिर्फ यज्ञ और अनुष्ठान से ही मंगलकारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ऐसे पहुंचे जागेश्वर धाम (Jageshwar Dham)
जागेश्वर धाम Jageshwar Dham पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। जबकि नजदीकी एयरपोर्ट पंतनगर एयरपोर्ट है। हल्द्वानी से जागेश्वर लगभग 120 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए आपको बस, टैक्सी मिल जाएंगी।