कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ पर निशाना साधा है। उन्होनें कहा कि सदन में जगदीप धनखड़ का व्यवहार विपक्षी सदस्यों के प्रति पक्षतापूर्ण है। उन्होनें कहा कि हमें मजबूरी में अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा।
खड़गे ने क्या कहा?
खड़गे ने कहा, विपक्षी नेताओं को बोलने से रोका जाता है। सभापति के चलते सदन में गतिरोध बना हुआ है। उनके आचरण से देश की गरिमा को नुकसान है। हमारी सभापति से निजी दुश्मनी नहीं है। आज सदन में राजनीति ज्यादा हो रही है। सभापति को निष्पक्ष होना चाहिए। धनखड़ सरकार के प्रवक्ता बन गए हैं।
सभापति का काम नियम से सदन को चलाना
खड़गे ने कहा कि सभापति का काम नियम से सदन को चलाना होता है और वो राजनीति से परे होते हैं। आज के समय में सभापति कभी सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे होते हैं तो कभी खुद को आरएसएस का एकलव्य बताते हैं।
देश के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्यसभा के सभापति के खिलाफ यह कदम उठाया गया हो। संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस नोटिस पर विचार किया जाए या नहीं, इसमें सरकार की भी प्रमुख भूमिका हो सकती है।
क्या कहता है संविधान के अनुच्छेद 67 (बी)?
संविधान के अनुच्छेद 67 (बी) में कहा गया है, उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव ( जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो) के जरिए उनके पद से हटाया जा सकता है। लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कम से कम 14 दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो, जिसमें यह बताया गया हो ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है।