उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत लगातार जीरो टॉलरेंस ऑन करप्शन का हवाला देते रहे। अब उन्ही त्रिवेंद्र सिंह रावत के औद्योगिक सलाहकार रहे और उनके बेहद करीबी रहे केएस पंवार मनी लांड्रिंग करने के आरोपों से घिर रहें हैं। इन आरोपों के बाद पंवार विवादों में आ गए हैं। ऐसे में कई गंभीर सवाल खड़े हो रहें हैं।
उत्तराखंड में मुख्यमंत्रियों के सलाहकारों का तिलिस्म बेहद चर्चित रहा है। राजधानी देहरादून के कैंट एरिया में बने मुख्यमंत्री आवास में बैठने वाले सलाहकारों का काम पिछले कुछ सालों में इतना रहस्यमयी सा दिखा है कि सोचना मुश्किल हो जाएगा कि ये कौन सी सलाह के लिए रखे गए हैं। फिलहाल इस मसले पर बात फिर कभी। वापस लौटते हैं केएस पंवार और उनकी पत्नी की कंपनी और मनी लांड्रिंग के उन आरोपों पर जो उन्हें चर्चाओं में ले आएं हैं।
केएस पंवार की पत्नी के निदेशकत्व वाली कंपनी सोशल म्यूचुअल बेनिफिट्स लिमिटेड कंपनी पहले भी चर्चाओं में रह चुकी है। दरअसल इस मामले में एक पत्रकार उमेश कुमार ने सबसे पहले चर्चा शुरु की थी। उमेश कुमार और त्रिवेंद्र के बीच छत्तीस का आंकड़ा था और जब उमेश कुमार के हाथ त्रिवेंद्र के सलाहकार के खिलाफ मामला हाथ लगा तो उसे उमेश कुमार ने जोर शोर से उछाला। उमेश कुमार उस समय विधायक नहीं थे लेकिन उनके उठाए मसले को कांग्रेस ने लपक लिया। कांग्रेस के तत्कालीन विधायक काजी निजामुद्दीन इस मामले को लेकर विधानसभा पहुंच गए और वहां हंगामा किया। आखिरकार सदन में इस मसले पर चर्चा भी हुई।
चूंकि उमेश कुमार की ओर से पुलिस को शिकायत मिल चुकी थी लिहाजा जांच जरूरी हो गई थी। जांच शुरु हुई और पुलिस ने कुछ लोगों से पूछताछ भी की। पुलिस को सब ठीकठाक लगा तो उसने अपनी रिपोर्ट लगा दी। उधर गंगा में खासा पानी बह चुका था। त्रिवेंद्र की गद्दी जा चुकी थी, कुर्सी पर अब धाकड़ धामी का राज था और उमेश कुमार पत्रकार से विधायक जी तक का रास्ता तय कर चुके थे।
उमेश कुमार ने फिर शिकायत लगाई। चूंकि मामला गंभीर था और पुलिस को लगा कि इस बार मनी लांड्रिंग का पेंच भी आ गया है सो इसे संभालना रेगुलर पुलिस के बस का नहीं है। लिहाजा पुलिस ने इसे इकोनामिक ऑफेंस विंग यानी EOW को सौंप दिया।
EOW को सौंपे जाने के बाद एक बात तो तय है कि अब पहले से अधिक तसल्ली से जांच होगी। उमेश कुमार ने पहले से ही कई सबूत इकट्ठा कर रखे हैं लिहाजा EOW को यहीं से शुरुआती जांच की लाइन मिल जाएगी। इसके साथ ही कंपनी के बही खाते से लेकर कंपनी में पैसे आने और जाने की भी जांच होगी। वैसे सूत्र बताते हैं कि केएस पंवार के लिए ये जांच गंभीर परिणाम दे सकती है।
क्या और कैसे हुआ?
मनी लांड्रिंग क्या होती है। कुछ कुछ लांड्री जैसा लग रहा है। जी हां, काम भी वैसा ही हो रहा है। गंदा यानी ब्लैक डालो, साफ यानी व्हाइट निकालो। दरअसल मनी लांड्रिंग में ब्लैक मनी को व्हाइट मनी में बदलने का बड़ा खेल होता है। कई बड़ी बड़ी कंपनियां इस खेल को लेकर विवादों में रहीं हैं। खैर बात सोशल म्यूचुअल बेनिफिट्स लिमिटेड की। तो आगे बढ़ें इससे पहले समझिए कि ये कंपनी या ऐसी कंपनियां काम कैसे करती हैं।
दरअसल ये लोगों से एफडी, आरडी जैसी स्कीम्स में पैसा लगवाती हैं। सोशल म्यूचुअल बेनिफिट्स एक तरह की Banking, Financial Services and Insurance या BFSI कंपनी है। सामान्य तौर पर नेटवर्किंग के जरिए ऐसी कंपनियां फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स बेचती हैं और गूगल बताता है कि ऐसी कंपनियों की परिकल्पना के पीछे देश की पर कैपिटा इंकम को बढ़ाना एक बड़ा मकसद था।
तो कुछ ऐसा ही इस केस में भी हुआ लेकिन मनी लांड्रिंग कैसे हुई? तो आरोपों के मुताबिक केएस पंवार के रिश्तेदारों के निदेशकत्व वाली इस कंपनी ने बड़े पैमाने पर पैसे जमा कराए। इन पैसों को जमा कराने के लिए खातेदार की डिटेल चाहिए थी। आरोप हैं कि कई फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए और जमाकर्ता के तौर पर पेश किए गए। कुछ दस्तावेजों में नाबालिगों के दस्तावेज मिलने की बात भी सामने आ रही है। इसके साथ ही कई लोगों को बिना बताए ही उनके आधार कार्ड की फोटो कॉपी लगाने जैसे खुलासे भी हो रहें हैं। अब हुआ ये कि फर्जी जमाकर्ताओं ने पैसे जमा तो किए लेकिन मैच्योरिटी के बाद पैसे निकालने के लिए जो खाते नंबर या अन्य जानकारी दी वो किसी और की दी। इससे हुआ ये कि फर्जी जमाकर्तोओं के जरिए ब्लैक मनी अलग अलग स्कीम्स में जमा कराई गई और कंपनी की स्कीम्स के मैच्योर होने पर उसे व्हाइट बनाते हुए निकाल लिया गया।
उमेश कुमार के आरोपों को माने तो तकरीबन 180 करोड़ से अधिक का खेल किया गया है। उमेश कुमार का तो दावा है कि ये उत्तराखंड में हुआ अब तक सबसे बड़ा स्कैम हो सकता है। चूंकि उस समय सीएम के खास सलाहकार की पत्नी इस कंपनी की डायरेक्टर थीं लिहाजा पूरा काम आसानी से होता चला गया।
वैसे इतने गंभीर आरोपों के बाद सोशल म्यूचुअल बेनिफिट्स कंपनी ने सफाई जारी कर अपना पक्ष रखा है। कंपनी ने ऐसे सभी आरोपों से इंकार किया है। कंपनी ने दावा किया है कि वो पूरी तरह से नियमों के तहत काम कर रही है उसने कोई वित्तीय अनिमितता नहीं की है।
केस में पॉलिटिकल एंगल
हालांकि शुरुआती तौर पर देखे तो ये वित्तीय अनियमितता और इसी लीक पर चलते हुए किेए गए अवैध कारोबार का केस लगता है लेकिन मामला उस समय गंभीर हो जाता है जब इसमें पॉलिटिकल एंगल आता है। चूंकि केएस पंवार सियासी तौर पर ताकतवर शख्स थे, उनकी पत्नी इस कंपनी में डायरेक्टर थीं लिहाजा इस पूरे मामले का राजनीतिकरण होना ही है। वहीं सवाल तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से भी पूछे जा रहें हैं लेकिन वो बहुत कुछ कहना नहीं चाह रहें हैं। वो अब जांच का हवाला भर दे रहें हैं।
क्या कहता है विपक्ष?
वैसे विपक्ष इस मामले में अजीब स्थिती में है। वो इस बात की तारीफ भी कर रहा है तो धीमी आवाज में वो भी पुष्कर सिंह धामी और त्रिवेंद्र के बीच खिंची तलवारों को सामने रख कर। विपक्ष का कहना है कि चूंकि दोनों नेताओं के बीच आपसी खींचचान चल रही है लिहाजा ये जांच कराई जा रही है। हालांकि कांग्रेस नेता जांच का स्वागत भी कर रहें हैं।