देशभर में राम मंदिर को लेकर तैयारियां जोरों शोरों से की जा रही है। प्राण प्रतिष्ठा से लेकर देश के वरिष्ठ गणमान्यों और साधु-संतों को मंदिर ट्रस्ट की ओर से निमंत्रण भेजा गया है। इसी बीच Shankaracharya के नाम की काफी चर्चा है। बहुत से लोगों के मन में ये सवाल होगा कि आखिर शंकराचार्य कौन होते हैं और उनका क्या महत्व है। आइये इस लेख में जानते हैं शंकराचार्य का हिन्दू धर्म में क्या महत्व है।
आदि शंकराचार्य ने मठों की शुरुआत की
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने मठों की शुरुआत की थी। वह हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे। इन्हें जगगदुरु के नाम से भी जाना जाता है। जो सनातन धर्म की रक्षा और प्रसार करना चाहते थे। इसके लिए उन्होनें अपने प्रमुख चार शिष्यों को देश के चार दिशाओं में स्थापित किए गए मठों की जिम्मेदारी दी। इन मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा जाता है। सनातन धर्म में शंकराचार्य को सर्वोच्च माना जाता है।
मठ/पीठ क्या होते हैं?
सनातन धर्म के मुताबिक, मठ में गुरु अपने शिष्यों को सनातन धर्म की शिक्षा और ज्ञान देते थे। यह आध्यात्मिक शिक्षा होती है। हालांकि, इसके साथ ही, मठों में जीवन के कुछ अहम पहलु, सामाजिक सेवा, साहित्य आदि का भी ज्ञान दिया जाता है। मठ एक ऐसा शब्द है जिसके बहुधार्मिक अर्थ हैं। देश में चार प्रमुख मठ द्वारका, ज्योतिष, गोवर्धन और श्रृंगेरी पीठ हैं। दरअसल, संस्कृत में मठों को ही पीठ कहा जाता है।
कैसे होता है Shankaracharya का चयन?
शंकराचार्य के पद पर बैठने वाले व्यक्ति को त्यागी, दंडी संयासी, संस्कृत, चतुर्वेद, ब्रह्मचारी और पुराणों का ज्ञान होना काफी जरुरी होता है। इसके साथ ही, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन, मुंडन, पिंडदान और रूद्राक्ष धारण करना काफी अहम माना जाता है। शंकराचार्य बनने के लिए ब्राह्मण होना अनिवार्य है, जिन्हें चारों वेद और छह वेदांगों का ज्ञाता होना चाहिए। जिन्हें शंकराचार्य बनाया जाता है, उन्हें अखाड़ों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतो की सभा की सहमति के साथ काशी विद्धुत परिषद की स्वीकृति की मुहर चाहिए होती है। इसके बाद ही शंकराचार्य की पदवी मिलती है।
देश के प्रमुख शंकराचार्य कौन है और किस मठ में हैं?
गोवर्धन मठ
यह मठ ओडिशा के पुरी में है। निश्चलानन्द सरस्वती इस मठ के शंकराचार्य हैं। गोवर्धन मठ के संन्यासियों के नाम के बाद ‘अरण्य’ सम्प्रदाय नाम लगाया जाता है। इस मठ के अन्तर्गत ‘ऋग्वेद’ को इसके अंतर्गत रखा गया है।

शारदा मठ
गुजरात के द्वारकाधाम में शारदा मठ है। सदानंद सरस्वती इस मठ के शंकराचार्य हैं। इस मठ के संन्यासियों के नाम के बाद तीर्थ या आश्रम लगाया जाता है। इस मठ के अंतर्गत ‘सामवेद’ को रखा गया है।

ज्योतिर्मठ
उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्मठ है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद इस मठ के शंकराचार्य हैं। ज्योतिर्मठ के संन्यासियों के नाम के बाद सागर का प्रयोग किया जाता है। अथर्ववेद को इस मठ के अंतर्गत रखा गया है।

श्रृंगेरी मठ
दक्षिण भारत के रामेश्वरम में श्रृंगेरी मठ है। इस मठ के शंकराचार्य जगदगुरु भारती तीर्थ हैं। इस मठ के संन्यासियों के नाम के पीछे सरस्वती या भारती लगाया जाता है। इस मठ के अंतर्गत यजुर्वेद को रखा गया है।
