रुद्रप्रयाग जिले में स्थित तुंगनाथ मंदिर विश्व में सबसे अधिक ऊंचाई पर बना शिव मंदिर है। यह समुद्र तल से 3680 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर भव्य एवं अद्भुत संरचना से बना हुआ है। तुंगनाथ मंदिर पंचकेदारों में शामिल है। यहां भगवान भोलेनाथ की भुजाओं की विशेष पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस स्थान पर भगवान शंकर भुजा के रूप में विद्यमान हैं।
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पांडवों ने की थी स्थापना
कहा जाता है कि पाण्डवों ने भगवान शिव को खुश करने के लिए तुंगनाथ मंदिर की स्थापना की थी। इसके पीछे कथा मिलती है कि कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार से भोलेनाथ पाण्डवो से रुष्ट थे तभी उन्हें प्रसन्न करने के लिए ही इस मंदिर का निर्माण किया गया था। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि माता पार्वती ने भी शिव को पाने के लिए यहीं पर तपस्या की थी।
ब्रह्म हत्या के कोप में थे पांचों पांडव
पंचकेदारों में द्वितीय केदार के नाम प्रसिद्ध तुंगनाथ की स्थापना कैसे हुई, यह बात लगभग किसी शिवभक्त से छिपी नहीं। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपनों को मारने के बाद व्याकुल थे। इस व्याकुलता को दूर करने के लिए वे महर्षि व्यास के पास गए। व्यास ने उन्हें बताया कि अपने भाईयों और गुरुओं को मारने के बाद वे ब्रह्म हत्या के कोप में आ चुके हैं। उन्हें सिर्फ महादेव शिव ही इस पाप से बचा सकते हैं।
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पांडवों से खफा थे महादेव
व्यास ऋषि की सलाह पर वे सभी शिव से मिलने हिमालय पहुंचे लेकिन शिव महाभारत के युद्ध के चलते काफी नाराज थे। इसलिए उन सभी को भ्रमित करके भैंसों के झुंड के बीच भैंसा का रुप धारण कर वहां से निकल गए। (भैंसे का रूप धारण करने के बाद से ही भगवान शिव को महेश के नाम से जाना जाता है) लेकिन पांडव भाई नहीं माने और भीम ने भैंसे का पीछा किया। इसके बाद भीम ने अपना विराट रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपना पैर रखकर खड़े हो गए। सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से चले गए, परंतु भगवान शिव अंतर्ध्यान होने ही वाले थे कि भीम ने भोलेनाथ की पीठ पकड़ ली।
ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शंकर नंदी बैल के रूप में प्रकट हुए थे तो उनका धड़ से ऊपरी भाग काठमांडू में प्रदर्शित हुआ था और वहां अब पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है. भगवान शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, भगवान शिव का चेहरा रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और भगवान शंकर की जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुई थी।
शिव की भुजाओं की होती है यहां पूजा
बता दें तुंगनाथ मंदिर वो जगह है जहां बैल के रूप में भगवान शिव के हाथ दिखाई दिए थे, जिसके बाद पांडवों ने तुंगनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।मंदिर के नाम का अर्थ ‘तुंग’ अर्थात् हाथ और ‘नाथ’ भगवान शिव के प्रतीक के रूप में लिया गया है।
तुंगनाथ मंदिर की चढ़ाई
चोपता समुद्रतल से 12000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से तीन किमी की पैदल यात्रा के बाद 13000 फुट की ऊंचाई पर तुंगनाथ मंदिर है, जो पंचकेदारों में एक केदार है। चोपता से तुंगनाथ तक तीन किलोमीटर का पैदल मार्ग बुग्यालों की सुंदर दुनिया से साक्षात्कार कराता है।
तुंगनाथ का मौसम
यदि आप पहाड़ी इलाकों में नही रहते हैं तो यहाँ आपको हर समय सर्दी का ही अहसास होगा क्योंकि यहाँ की गर्मी मैदानी इलाकों के लिए सर्दी के बराबर ही है। यहाँ गर्मियों में अधिकतम तापमान 15 से 20 डिग्री तक पहुँचता है। जबकि सर्दियों में तो यहाँ बर्फ जम जाती है और तापमान -5 से -10 डिग्री तक पहुँच जाता है। इसलिए आप जब भी यहाँ आए तो गर्म कपड़े साथ में ही लेकर आए।
कैसे पहुंचे तुंगनाथ
तुंगनाथ पहुँचने के लिए आप उत्तराखंड राज्य के तीन बड़े शहरों हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून कहीं भी आ जाए क्योंकि उससे आगे की यात्रा आपको बस, टैक्सी या निजी वाहन से ही करनी पड़ेगी।