रुड़की: बेटियां भी बेटों से कम नहीं होती। इसी स्लोगन को सार्थक कर दिखाया है मंगलौंर के छोटे से गांव हरचंदपुर निजामपुर की 26 वर्षीय दिव्यांग संगीता और 28 वर्षीय बीना ने। दोनों सगी बहनों ने जवान भाई की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले ली। दोनों बहनें पिता के साथ खेतीबाड़ी से लेकर व्यवसाय तक की जिम्मेदारी को निभाती हैं और पिता को कभी ये महसूस नहीं होने देती की उनका बुढ़ापे का सहारा उनका बेटा नहीं है।
पिता देवपाल सिंह दूध की डेरी का व्यवसाय करते हैं। इसके साथ ही खेती का काम भी करते आ रहे हैं, जिसमें छोटी बेटी संगीता डेरी के व्यवसाय में पिता का हाथ बंटाती हैं, तो वही बड़ी बेटी बीना खेतीबाड़ी के साथ-साथ पशुओं के चारे का इंतजाम करती हैं। महिला सशक्तिकरण की मिसाल ये बेटियां वाकई किसी बेटे से कम नही। रुड़की के कस्बा मंगलौंर का छोटा सा गाँव हरचंदपुर निजामपुर के रहने वाले इस परिवार से पूरा गांव प्रेरणा लेता है। जानकारी के मुताबिक देवपाल सिंह का एक बेटा और चार बेटियां है, जिनमे से दो बड़ी बेटियों की शादी हो चुकी है और दो बेटियां संगीता और बीना पिता के काम मे हाथ बटाती है।
दरअसल, करीब 13 साल पहले देवपाल सिंह के बेटे की सड़क दुर्घटना में जान चली गई थी। जवान बेटे की मौत के बाद हँसते खेलते परिवार में मानो ग्रहण सा लग चुका था। बुढ़ापे का सहारा खो जाने के बाद बेटियां पिता का सहारा बनी और मुश्किल समय मे परिवार को सँभाल लिया। देवपाल सिंह ने बड़ी दो बेटियों की शादी कर दी। जबकि दो बेटियां जिनमे संगीता जो शुरुआत से ही दिव्यांग है और अपने पैरों से चल नही पाती लेकिन पिता के साथ दूध के कारोबार का जिम्मा खूब संभाले हुए है। वहीं पिता का कारोबार संभालने के साथ-साथ संगीता ने एमकॉम की पढ़ाई भी की है।
दूसरी बड़ी बेटी बीना पिता की खेतीबाड़ी का काम संभालती है। इसके साथ ही पशुओं का चारा लाने के साथ-साथ घर के कामकाज को भी अंजाम देती है। वहीं बड़ी बेटी बीना ने खेती और घर के कामकाज के साथ-साथ बीए की पढ़ाई की है। लेकिन दोनों बेटियों ने बेटे की कमी को महसूस नही होने दिया। हालांकि परिवार को जवान बेटे के खोने का गम हर वक्त सताता है। माता-पिता बेटियों पर गर्व महसूस करते है और सीना तानकर कहते है कि बेटियां भी बेटों से कम नही होती। महिला सशक्तिकरण की मिसाल ये बेटियां औरों के लिए भी एक नजीर है।