देहरादून: उत्तराखंड राज्य को देवभूमी के साथ ही वीरभूमी भी कहा जाता है। देश की सरहदों की रक्षा के लिए वीरभूमि के जवान हर वक्त तैयार रहते हैं। राज्य का शायद ही ऐसा कोई गांव होगा, जहां से सेना में कोई जवान ना हो। उत्तराखंड के लिए कहा जाता है कि यहां हर घर से सेना में कोई ना कोई जरूर है। सैन्य बहुल प्रदेश होने के चलते राज्य हर साल जवानों की शहादत को देखता है। त्रिवेंद्र सरकार ने शहीदों के आश्रितों की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर लिया है। शहीदों के परिवारों के लिए कानून भी बनाया है।
पूर्व सैनिक और शहीदों के परिवारों की मदद
त्रिवेंद्र सरकार ने उपनल के जरिए पूर्व सैनिक और शहीदों के परिवारों की मदद करने में सफलता हासिल की है। सैनिक कल्याण योजना के तहत त्रिवेंद्र सरकार ने पूर्व सैनिकों और शहीदों के परिवारों की आर्थिक सहायता, पेंशन से संबंधित समस्या और उनकी सभी मांगों को प्राथमिकता से हल किया।
शहीद आश्रित अनुग्रह अनुदान विधेयक
देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले शहीदों के परिवारों के लिए उत्तराखंड विधानसभा में उत्तराखंड शहीद आश्रित अनुग्रह अनुदान विधेयक 2020 को मंजूरी दे दी गई। जिसके बाद अब शहीदों के आश्रितों को जीवन यापन के लिए सरकार की तरफ से 10 लाख की सहायता राशि मिलेगी।
कानून नहीं था
राज्य में अभी तक शहीद जवानों के परिजनों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए कानून नहीं था। राज्य सरकार की तरफ से सीएम राहत कोष से ही दस लाख रुपये तक की सहायता धनराशि दी जाती थी, जिसमें कई बार बजट की कमी के चलते सहायता राशि देने में देरी भी हो जाती थी। लेकिन, अब त्रिवेंद्र सरकार द्वारा शहीदों के परिजनों के लिए ये विशेष कानून बना दिया गया है। a
इस कानून का प्रवाधान मार्च 2014 के बाद से शहीद हुए राज्य के सैनिकों पर लागू होगा, जिसमें शहीद की पत्नी को 60 प्रतिशत और माता-पिता को 40 प्रतिशत सहायता राशि मिलेगी। अगर माता-पिता जीवित नहीं है तो पत्नी को पूरी धन राशि दी जाएगी।