मनीष डंगवाल/देहरादून। उत्तराखंड में जनता के धन का दुरूप्रयोग किस तरह किया जा रहा है। इसका एक ऐसा उदाहरण हम आपको बताने जा रहे हैं। इस खबर को पढ़ने के बाद आप भी मानेंगे कि जनता की गाढ़ी कमाई कैसे नेता अपने ‘करीबियों’ के लिए उड़ा देते हैं।
ये पूरी खबर उत्तराखंड भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड से जुड़ी हुई है। ये वही कर्मकार बोर्ड है जो त्रिवेंद्र सरकार में खासा चर्चाओं में रहा। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बतौर मुख्यमंत्री, श्रम मंत्री हरक सिंह रावत को इस बोर्ड से हटा दिया था। इसके बाद हरक सिंह रावत की करीबी दमयंती रावत की भी इस बोर्ड के सचिव पद से छुट्टी कर दी गई थी। कर्मकार बोर्ड के कामकाज पर सवाल तो उठा ही इसके साथ ही पता चला कि बोर्ड का दफ्तर जिस मकान में चलता है वो भी मंत्री जी की करीबी लक्ष्मी राणा के नाम पर। बोर्ड प्रति महीने बतौर किराया साठ हजार रुपए अदा करता है। वैसे एक जानकारी और दे दें कि बोर्ड का दफ्तर कभी हल्दवानी में हुआ करता था और कहते हैं कि मंत्री जी की ‘कोशिशों’ से इसे देहरादून शिफ्ट कर दिया गया था।
जब बोर्ड पर हर तरफ से अंगुलियां उठने लगीं तो त्रिवेंद्र सरकार ने बोर्ड का अध्यक्ष तो बदला ही साथ ही मंत्री हरक सिंह रावत की करीबी लक्ष्मी राणा के मकान से निकाल कर देहरादून के तीलू रौतेली भवन के चार कमरों में शिफ्ट कर दिया। अब बोर्ड के नए अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल बनाए गए और बोर्ड के दफ्तर का नया पता हुआ तीलू रौतेली भवन, सर्वे रोड, देहरादून।
लेकिन खेल अब शुरु हुआ। दरअसल 9 मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी चली गई। इसके बाद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। साथ ही एक बार फिर से हरक सिंह रावत की श्रम मंत्री के तौर पर कैबिनेट में वापसी हो गई। त्रिवेंद्र का दौर खत्म हो चुका था और हरक एक बार फिर से ‘पॉवर’ में आ चुके थे। हरक सिंह रावत ने अपने ‘पॉवर’ का इस्तमाल शुरु किया। बताते हैं कि कर्मकार बोर्ड के दफ्तर को ‘विशेष प्रयासों’ से फिर एक बार मंत्री जी की ‘करीबी’ लक्ष्मी राणा के मकान में शिफ्ट कर दिया गया। दिलचस्प ये है कि लक्ष्मी राणा पहले इसी बोर्ड के दफ्तर को अपने मकान से हटाने और मकान खाली करने का नोटिस दे चुकी थीं। यही नहीं, बोर्ड दफ्तर का बिजली और पानी का कनेक्शन भी काट दिया गया था। लेकिन ‘रिश्तों’ को निभाते हुए बदले राजनीतिक समीकरणों में बोर्ड वापस लक्ष्मी राणा के मकान में शिफ्ट कर दिया गया।
यानी जो दफ्तर सरकारी बिल्डिंग के चार कमरों में चल सकता था उसे दो मंजिल का मकान दे दिया गया। बोर्ड को बतौर किराया एक भी पैसा खर्च नहीं होता था तो वहीं उसे साठ हजार प्रति महीने के किराए की बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया गया।
दिलचस्प ये है कि बोर्ड एक बार फिर से अपने लिए नया मकान तलाश कर रहा है। हालांकि इस सबके बीच ये साफ है कि बोर्ड में हरक युग की वापसी एक बार फिर से हो चुकी है और हो वही रहा है जो हरक चाहते हैं। अब देखना ये होगा कि पुराने मुख्यमंत्री की तरह नए वाले मुख्यमंत्री हरक सिंह रावत की ‘चाहतों’ के साथ कितना तालमेल बैठा रहें हैं।