देहरादून: मुख्य सचिव ओमप्रकाश की अध्यक्षता में मध्याह्न भोजन योजना (मिड डे मील) की राज्य स्तरीय क्रियान्वयन एवं अनुश्रवण समिति की 17 वीं बैठक आयोजित की गयी। मुख्य सचिव ने शिक्षा विभाग को मध्याह्न भोजन योजना और राष्ट्रीय पोषण अभियान के अन्तर्गत बच्चों को दिये जाने वाले भोजन की गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाने के निर्देश दिये, जिससे बच्चों को बेहतर पोषण उपलब्ध हो सके। उन्होंने सम्बन्धित जनपद के जिलाधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी के माध्यम से मध्याह्न भोजन योजना की लगातार मॉनिटरिंग करवाने को भी कहा।
उन्होंने मिड डे मील की गुणवत्ता और क्वांटिटी के संबंध में लोगों की फीडबैक और शिकायतों को प्राप्त करने के लिये टोल फ्री नं. 18001804132 का व्यापक प्रचार-प्रसार करने और लोगों द्वारा प्राप्त होने वाली फिडबैक के अनुरूप इसमें व्यापक सुधार करने के निर्देश दिये। मुख्य सचिव ने युसाटा (उत्तराखण्ड सोशल ऑडिट अकाउंटेबिलिटी एंड ट्रांसपेरेंसी ऐजेंसी) की सोशल ऑडिट में सुझाये गये बिन्दुओं के अनुरूप सुधार करने और स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से नियमित रूप से बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण करने को निर्देशित किया।
इसके अतिरिक्त उन्होंने खाद्य आपूर्ति विभाग, स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग को आपस में बेहतर समन्वय से कार्य करने और बच्चों को बेहतर पोषण व स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के लिये समय से खाद्य सामग्री की खरीद और पर्याप्त आपूर्ति करने को कहा। शिक्षा विभाग से अपर निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने इस दौरान उपस्थित सदस्यों के समक्ष मिड डे मील तथा राष्ट्रीय पोषण अभियान के अन्तर्गत बच्चों को दी जा रही सुविधाओं, योजना के बेहतर क्रियान्वयन, वित्तीय अपडेट तथा सत्रवार बच्चों की विद्यालय में उपस्थिति इत्यादि का प्रजेन्टेशन के माध्यम से विवरण प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि बच्चों को मिड डे मील प्रदान करने में लगातार बेहतर प्रयास किये जा रहे हैं तथा हंस फाउंडेशन के सहयोग के गुणवत्ता में लगातार सुधार किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त फूड क्वालिटी टैस्ट, किचन गार्डन्स, मुख्यमंत्री आंचल अमृत योजना जैसे अभिनव प्रयास भी किये जा रहे हैं, जिसका सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहा है। मिड डे मील योजना के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में भारत सरकार से श्रीमती ऋतु अग्रवाल, एस.के. सिन्हा तथा अर्नव डाकी प्रतिनिधि के रूप में जुड़े हुए थे जिसमें से ऋतु अग्रवाल ने मिड डे मील योजना के क्रियान्वयन हेतु पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग मानक रखने का सुझाव दिया।