देहरादून : अक्सर ऐसी खबरें आई और देखा गया कि हैं कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार के बाद शव अध जली अवस्था में गंगा नदी में बहते नजर आए या उन्हें कुत्ते नोंचते हुए नजर आए जो कि लोगों समेत पर्यावरण के लिए खतरा है। वैज्ञानिकों ने इस पर चिंता जाहिर की है। बता दे कि हर साल लाखों करोड़ों श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगाते हैं वहीं कहीं इसका असर उनकी सेहत पर ना पड़े इसका भी शोध में अध्ययन किया जाएगा।
वहीं इसका कोविड कर्फ्यू के दौरान गंगा की सेहत और उसकी जैव विविधता में बदलाव पर भारतीय वन्यजीव संस्थान ने शोध शुरू कर दिया है। शोध में कोविड संक्रमित शवों से गंगा पर पड़े प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है। साथ ही कोविड संक्रमित शवों को गंगा में न डालने को लेकर भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है, ताकि गंगाजल दूषित न हो।
सरकार भी इसको लेकर सचेत हो गई थी और सरकार ने कोरोनावायरस संक्रमित मृतकों के शवों को जलाने के लिए श्मशान घाट की व्यवस्था भी की है। गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान के साथ चलाए जा रहे नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) के तहत हरिद्वार से लेकर गंगा सागर तक शोध और जागरूकता अभियान शुरू किया गया है।
ताकि ये पता चल सके कि गंगा में संक्रमित शवों डालने से इसकी शुद्धता पर क्या असर पड़ा। शवों की वजह से कही इसमें रहने वाले जलीय जीवों या वनस्पतियों पर तो असर नहीं पड़ा। सीधे गंगा का पानी पीने और अन्य कामों में इस्तेमाल करने वाले लाखों लोगों की सेहत पर इसका क्या असर रहा।
एनएमसीजी की कोऑर्डिनेटर और भारतीय वन्यजीव संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रुचि बडोला के अनुसार, करीब दो हजार स्थानीय ग्राम प्रहरी और करीब डेढ़ सौ विशेषज्ञों की मदद ली जा रही है। ये टीम उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा किराने वाले इलाकों में काम कर रही