देहरादून: उत्तराखंड में जिला सहकारी बैंकों में चतुर्थ श्रेणी भर्ती घोटाले का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। सत्ता पक्ष जहां कार्रवाई कर यह जताना चाहता है कि सरकार भर्ती घोटाले को लेकर गंभीर है, तो वहीं विपक्ष सरकार की नीयत पर सवाल खड़े कर रहा है। उत्तराखंड में जिला सहकारी बैंकों में चतुर्थ श्रेणी भर्ती घोटाले की आंच में अब कई अफसर आ चुके हैं। अब तक घोटाले को लेकर 8 अफसरों पर कार्रवाई की जा चुकी है।
4 जिलों के सहायक निबंधक बदले जा चुके हैं, जिसको लेकर अब सवाल यही उठता है कि आखिरकार इतने बड़े स्तर पर जब कार्रवाई और जांच चल रही है, तो सवाल उठता है कि आखिर क्यों बड़े फसर इस घोटाले पर चुप्पी साधे रहे। किसके कहने पर भर्तियां की गई। खास बात यह है कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में कई विधायकों ने यह मामला उठाया था। उसके बाद ही जांच शुरू हो पाई है।
विपक्ष विभागीय जांच पर ही सवाल उठा रहा है। कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह का कहना है कि मामले कि यदि एसआईटी जांच कराई जाए तो बात है। विभागीय अधिकारी ही जांच कर रहे हैं, तो इससे कई तथ्य सामने नहीं आएंगे। भर्ती घपले की स्पष्ट जांच होनी चाहिए और जो लोग इसमें दोषी हैं, उन पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
जिला सहकारी बैंकों में चतुर्थ श्रेणी के पदों पर घपले को लेकर भाजपा संगठन भी सरकार के बचाव में कहता हुआ नजर आ रहा है। संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकार के संज्ञान में मामला आते ही सरकार ने जांच बिठा दी, जिसका नतीजा यह है कि आज कई अधिकारियों पर कार्रवाई हो चुकी है। वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का भी कहना है कि सरकार पारदर्शिता के साथ काम कर रही है और जिस भी जांच की आवश्यकता पड़ेगी वह की जाएगी।
यह उत्तराखंड के उन बेरोजगारों के साथ किसी मजाक से कम नहीं है कि अधिकारियों ने योग्य युवाओं के बजाय सेटिंग-गेटिंग कर अपनों को ही नौकरी दी। चतुर्थ श्रेणी के पदों पर भर्ती कर दी, जबकि जो बेरोजगार इसके लिए पात्र थे। वह अपनी बेरोजगारी की पीड़ा को व्यक्त करते रह गए। ऐसे में देखना यही होगा कि आखिरकार जो जांच पूरे मामले को लेकर चल रही है, उस जांच से उन बेरोजगार युवाओं को न्याय मिल पाता है या नहीं।