देहरादून: उत्तराखंड के जंगलों में धधकती आग वन विभाग के लिए लगातार चुनौती बनी हुई है कि कैसे आग पर काबू पाया जाए। लेकिन, अफसोस यह है कि सारी कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। आग की चपेट में आए जंगल खाक होने से करोड़ों की वन सम्पदा खाक हो गई है, तो पिछले साल के मुकाबले इस बार करीब 30 प्रतिशत जंगलों में आग ज्यादा धधकी है। उत्तराखण्ड का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा जंगलों से घिरा है। लेकिन, बेतहाशा गर्मी के इस मौसम में जंगलों में लगी आग काल बनी हुई है। पहाड़ों में लगातार सुलगते जंगलों में लगी आग आबादी वाले इलाकों के लिए खतरा बने हुए है।
गर्मी के सीज़न में बारिश ना होने से भी जंगलों में धधकती आग को बुझाना वन विभाग के लिए चुनौती बना हुआ है। विभाग की तरफ से तमाम उपाय करने के बाद भी जंगलों में सुलगती आग बुझने की बजाय लगातार बढ़ रही है। सैकड़ों वन हेक्टेयर आग से खाक हो चुका है। देखा जाए तो पिछले साल के मुकाबले इस बार करीब 30 प्रतिशत जंगल ज्यादा धधके हैं, वह भी, तब जबकि फायर सीज़न बीतने में डेढ़ महीने बाकी है।
उत्तराखण्ड में फायर सीज़न 15 फरवरी से शुरु होने के बाद से ही जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरु हो गया और मार्च- अप्रैल आते आते जंगलों में आग लगने की घटनाओं का ग्राफ ऐसा बढ़ा कि लगातार इसमें उछाल ही आ रहा है।
फायर सीज़न में अबतक 1713 घटनाएं दर्ज की जा चुकी है।
इनमें से 2 हज़ार 785 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग की भेंट चढ़ गया। इनमें आरक्षित वन क्षेत्र में 1 हज़ार 190 घटनाओं में 1 हज़ार 993 हेक्टेयर जंगल जला। सिर्फ अप्रैल महीने में 1 हज़ार 137 घटनाएं हुई है, जिनमें से 1 हज़ार 352 हेक्टेयर वन क्षेत्र राख हो चुका है। आग से सुलगते जंगलों में खाक होती वन सम्पदा को लेकर विभागीय अधिकारी भी चिंतित दिखाई दे रहे है। विभागीय अधिकारी इस बात को मान रहे है कि जंगलों में आग की चुनौती बढ़ गई है।
हालांकि विभागीय स्तर पर आग पर काबू पाने के हर जतन किए जा रहे है तो वन पंचायतों का भी आग बुझाने के लिए सहयोग लिया रहा है बावजूद इसके जंगलों में लगी आग पर काबू नहीं पाया जा रहा है। ऐसे में मौसम अपडेट पर भी अधिकारियों की टकटकी लगी है कि कब मौसम बदले और बारिश से वनों को बचाया जा सके। मगर बारिश से पहले अगर आग की घटनाओं पर काबू नहीं पाया गया तो परिणाम घातक हो सकते हैं।