रुड़कीः उत्तराखंड के चमोली जिले में आई आपदा के बाद से ही वैज्ञानिक ग्लेशियरो को लेकर अलग-अलग तरीके से अध्ययन करने में जुटे हुए है। रुड़की आईआईटी के राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) के वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर के साथ उस जगह की घाटी और क्षेत्र का भी अध्ययन किया जाना चाहिए ताकि लोगों को समय-समय पर जागरूक किया जा सके।
ग्लेशियर झीलों के टूटने से आने वाली तबाही और बचाव के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिको के सहयोग से डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथरिटी ने 10 चेप्टर की गाइडलाइन तैयार की है। इसमें स्विजरलैंड की सिवस एजेंसी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एनआईएच के वैज्ञानिकों का कहना है कि गाइड लाइन के अनुसार हिमालयी झीलों का रोजाना सेटेलाइट और अन्य तकनीक के माध्यम से मॉनिटरिंग होनी चाहिए।
इसका हर रोज का डाटा सार्वजनिक हो, साथ ही जिन जगहों पर ग्लेशियर सिकुड़ रहे है वहाँ पर फोकस कर झीलों में पानी कम करने के लिए पम्पिंग को अमल में लाया जाए। उन्होंने बताया कि गाइड लाइन में बताया गया है कि स्थनीय प्रशासन को और आपदा तंत्र से जुड़े लोगों को भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि जानमाल के खतरे से बचा जा सके। बीती 7 फरवरी को चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने की घटना के मद्देनजर बड़ी तबाही आई थी जिसमे कई लोगो ने अपनी जान गवाई तो सैकड़ो लोग आज भी लापता है, जिनकी तलाश में लगातार रेस्क्यू जारी है।