उत्तराखंड की संस्कृति, परंपरा से जुड़ा पर्व फूलदेई आज से मनाया जा रहा है। गढ़वाल व कुमाऊं में विशेष रूप से मनाया जाने वाले इस पर्व पर सुबह फुलारी यानी छोटे बच्चों ने देहरी पूजन कर फूलों से सजाया।
15 मार्च को चैत्र मास की संक्रान्ति, यानी भारतीय कलैंडर का पहला दिन। आज के दिन फूलदेई त्योहार मनाया जाता है। आज का दिन बच्चों के लिए बेहद खास और उत्साह भरा होता है। इस दिन का बच्चे बड़ी बेसब्री से इंतजार करते है।
छोटे बच्चों को कहा जाता है फुलारी
आज छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें फुलारी कहा जाता है, वह घर-घर जाकर आंगन में फूल डालते हैं। इस दौरान वो फूलदेई पर्व की शुभकामनाएं भी देते हैं। सुबह होते ही बच्चे बुरांस, फ्योंली, सरसों, कठफ्योंली, आड़ू, खुबानी, भिटौर, गुलाब आदि के फूलों को तोड़ने अपने घरों से निकल जाते है। इसके बाद वह उन फूलों को घर लाकर ‘रिंगाल’ से बनी अपनी टोकरी में सजाते हैं। इसके बाद बच्चे घर-घर जाकर देहली में फूल डाल कर कहते है “फूलदेई, छम्मा देई, दैंणी द्वार, भर भकार, यो देई में हो, खुशी अपार, जुतक देला, उतुक पाला, य देई कैं, बारम्बार नमस्कार, फूलदेई, छम्मा देई.
इन पंक्तियों का अर्थ है, “देहली के फूल भरपूर और मंगलमयी हो, घर की देहरी क्षमाशील हों और सबकी रक्षा करें, सबके घरों में अन्न का पूर्ण भंडार हो।” इसके बदले में लोग बच्चों को आशीर्वाद देकर गुड़, चावल, मिठाई और पैसे दक्षिणा के रूप में भेंट करते हैं। शाम को पारम्परिक गढ़वाली-कुंमाऊनी पकवान बनाकर आस-पड़ोस में बांटे जाते हैं। देखा जाए तो फूल संक्रान्ति बच्चों को प्रकृति प्रेम और सामाजिक चिंतन की शिक्षा बचपन से ही देने का एक आध्यात्मिक पर्व है।
ये है फूलदेई मानाने के पीछे धार्मिक मान्यता
एक बार भगवान शंकर तपस्या में लीन हो गए। कई ऋतु चली गई। ऐसे में देवताओं और गणों की रक्षा के लिए मां पार्वती ने चैत्र मास की संक्रांति के दिन कैलाश पर घोघिया माता को पुष्प अर्पित किए। इसके बाद से ही चैत्र संक्रांति पर फूलदेई का पर्व मनाया जाने लगा।
गैरसैंण में धूम धाम से मनाया गया फूलदेई
गैरसैंण में बजट सत्र चल रहा है इस दौरान छोटी बच्चियों ने सुबह विधानसभा में आकर देहलियों में फूल डाले। बता दे छोटी बच्चियां शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत के आह्नान पर विधानसभा पहुंची थी। इस दौरान सभी उत्तराखंड की पारम्परिक वेशभूषा में नजारा आई।