विधायक को जनता इसलिए चुनकर विधानसभा भेजती है ताकि वो अपने क्षेत्र में विकास कार्यों को बुलंदी तक पहुंचा सके लेकिन अगर हम आपसे कहें कि जिस प्रतिनिधि को आपने अपनी दिक्कतों और परेशानियों के लिए चुना है असल में उनकी जनसेवा की कमाई एक दिन की इतनी है कि किसी ज़िले के डीएम को भी इतना पैसा नहीं मिलता होगा। तो यकीनन ये बात हज़म करने वाली तो बिल्कुल नहीं है मगर ऐसा हुआ है। आरटीआई के ज़रिए हुए इस खुलासे पर आधारित हमारी ये रिपोर्ट पढ़कर आप समझ जाएंगे कि विकास का जिम्मा जिनके ऊपर था उन्होंने अपना विकास खूब किया है।
उत्तराखण्ड सरकार साल दर साल कर्ज़ के बोझ के तले दबने के बावजूद विधायकों के वेतन और भत्ते में तेज़ी से इज़ाफा हो रहा है। आम कर्मचारियों के भले ही वेतन में मामूली इज़ाफा हो रहा हो मगर विधायकों के भत्ते और वेतन का ग्राफ तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
दो हजार से बढ़कर 30 हजार
उत्तराखण्ड राज्य गठन से लेकर 2021 तक इतने सालों में विधायकों का वेतन 15 गुना तक बढ़ गया है। जबकि अन्य भत्तों में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। इस बात का खुलासा काशीपुर निवासी नदीमउद्दीन की तरफ से दाखिल आरटीआई के तहत हुआ। आरटीआई से हुए खुलासे के तहत राज्य गठन के वक्त यानि 9 नवम्बर 2000 को विधायकों का वेतन 2 हज़ार रुपए हर महीने निर्धारित हुआ। जो 1 अप्रैल 2017 को बढ़कर 30 हज़ार रुपए प्रतिमाह हो गया।
यहीं नहीं विधायकों के वेतन भत्ते के अलावा अन्य भत्तों में भी इज़ाफा को देखने को मिला है। आरटीआई में मिली सूचना में इस बात का भी ज़िक्र है कि विधायकों को मिलने वाले निर्वाचन क्षेत्र भत्ते की दर 5 हज़ार से 30 गुना बढ़ाकर डेढ़ लाख रुपए कर दी गई। 9 नवम्बर साल 2000 में जो निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 5 हज़ार था वो अप्रैल 2014 तक 75 सौ रुपए और पहली जनवरी 2015 तक 15 हज़ार रुपए हो गया।
भत्ते भी बढ़ाए गए
राज्य गठन के समय विधायकों को चालक भत्ता नहीं मिलता था मगर पहली जनवरी 2014 से ये भत्ता भी मिलना शुरु हो गया और ये अप्रैल 2017 तक बढ़ाकर चौगुना यानि 12 हज़ार रुपए कर दिया गया। राज्य गठन के वक्त विधायकों को एक हज़ार रुपए की दर से मिलने वाले सचिवालयी भत्ते को 12 गुना बढ़ाकर पहली अप्रैल 2017 को 12 हज़ार रुपए कर दिया गया।
यकीनन विधायकों के भत्ते और वेतन में इतनी बढ़ोत्तरी हैरान करने वाला इसलिए भी है कि उत्तराखण्ड राज्य की वित्तीय हालात पहले ही ऐसे हैं कि साल दर साल कर्ज़ का बोझ बढ़ रहा है। ऐसे में राज्य के वित्तीय हालातों में सुधार के लिए क्या कुछ ज़रुरी कदम उठाए जाएंगे ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है फिलहाल राज्य के लिए अच्छे संकेत तो नहीं कहा जा सकता है।
अर्थव्यवस्था पर कर्ज का बोझ
अब आपको ये भी समझाते हैं कि आखिर राज्य की आर्थिक हालात क्या हैं और किस तरह से राज्य पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। हालांकि हमने कुछ दिनों पहले ही इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी लेकिन आज एक बार फिर आपकी जानकारी के लिए उन आंकड़ों को यहां साझा कर रहें हैं।
राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार 2021 -22 तक उत्तराखंड पर 73,477.72 करोड़ का कर्ज हो चुका था। अगर इसी रफ्तार से कर्ज बढ़ता रहा तो राज्य सरकार पांच सालों में 54 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज ले सकती है। यानी राज्य पर कुल कर्ज का भार एक लाख करोड़ से भी अधिक पहुंच जाएगा।
अगर सरकार को जीएसटी में मिलने वाली पूंजी में इजाफा होता है तो कुछ हद तक कर्ज का बोझ कम हो सकता है। अनुमान के अनुसार अगले पांच सालों में करीब 6700 से 11000 करोड़ रुपए तक की आय जीएसटी से हो सकती है। इस संबंध में पूरी खबर पढ़ने के लिए इस लिंक को क्लिक करें –