उत्तराखंड में अधिकारी लापरवाह हो चले हैं जिससे राज्य को करोड़ों का नुकसान हुआ है। बता दें कि ये हम नहीं कहरहे बल्कि इसका खुलासा कैग की रिपोर्ट में हुआ है। जी हां बता दें कि कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ठेकेदारों ने निर्माण कार्यों के लिए बिना पास या परमिट उपखनिज का परिवहन किया। हैरानी की बात ये है कि अधिकारी सब जानते हुए भी खामोेश रहे जिससे राज्य को करोड़ों का चूना लगा है।
आपको बता दें कि कैग ने साल 2017-18 में प्रदेश के 9 जिला खनन कार्यालयों के दस्तावेज खंगाला था और इससे बड़ी सच्चाई सामने आई। कैग ने मई 2018 से अगस्त 2018 के रिकॉर्ड की जांच में खुलासा किया कि नियमों के मुताबिक संबंधित ठेकेदारों पर 237.10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाना था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया और इसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ा। सरकार को करोड़ों की चपत लगी है।
कैग की रिपोर्ट के अनुसार उपखनिज के परिवहन के लिए संबंधित प्रतिष्ठान या व्यक्ति को फार्म एमएम-11 हासिल करना जरुरी है। इस मामले में प्रदेश की विभिन्न कार्यदायी संस्थाओं ने परीक्षण अवधि में जो निर्माण कार्य कराए, उनमें फार्म एमएम-11 जमा नहीं कराया गया। कार्यदायी संस्थाओं ने सिर्फ इतना किया कि ठेकेदारों के बिल के अनुसार 47.42 करोड़ रुपये का सामान के मुताबिक इतनी ही रॉयल्टी भुगतान से काटकर कोषागार में जमा करा दी। कैग के अनुसार नियमों का उल्लंघन करने वालों से रायल्टी का पांच गुना अर्थदंड वसूल करना चाहिए था। यह राशि 237.10 करोड़ रुपये बैठती है और अधिकारियों ने इसकी वसूली के लिए अपेक्षित कोशिश नहीं किए। इसमें संबंधित कार्यदायी संस्थाओं की निष्क्रियता भी सामने आई, क्योंकि खनन अधिकारियों ने ठेकेदारों से जुर्माना वसूली के लिए प्रकरण को जिलाधिकारी, संबंधित खनन अधिकारियों के समक्ष नहीं रखा। इसके अलावा जिला खनन अधिकारियों ने भी प्रकरण का उचित संज्ञान नहीं लिया। सिर्फ यह बताया गया कि वसूली की कोशिश की जा रही है।
इन जिलों में अधिकारियों ने लगाया सरकार को चूना
आखिर में अधिकारियों ने कैग को सिर्फ यह बताया कि फरवरी 2020 और मई 2020 में मामले को शासन को संदर्भित कर दिया गया है। बता दें कि कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ये खेल देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, ऊधमसिंह नगर, नैनीताल व पिथौरागढ़ में खेला गया है।
यहां लगी सरकार को 23 लाख की चपत
कैग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि सब रजिस्ट्रार विकासनगर कार्यालय में एक कंपनी ने पहले से स्थापित औद्योगिक इकाई की खरीद के लिए 9.16 करोड़ रुपये का विलेख पंजीकृत किया। इस तरह कंपनी ने स्टांप ड्यूटी पर 50 फीसद की छूट मांगी और हासिल भी की। यह छूट 22.90 लाख रुपये थी। कैग ने आपत्ति लगाई कि अधिसूचना के अनुसार पहले से स्थापित इकाई के लिए छूट अनुमन्य नहीं थी। जिसके चलते सब रजिस्ट्रार विकासनगर से अधिसूचना को ध्यान में रखे बिना ये फैसला ले लिया और इससे सरकार को 23 लाख की चपत लगी।