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देहरादून: राजनीति में बहुत कम नेता ऐसे होते हैं, जो जीतते चले जाते हैं। हरबंस कपूर भी ऐसे ही नेताओं में शामिल रहे हैं। उनको 1985 में सिर्फ एक बार हार मिली थी। उसके बाद से वो कभी नहीं हारे। उत्तराखंड की राजनीति में वही एक मात्र अजेय विधायक रहे हैं। हरबंस कपूर 4 बार यूपी और और 4 चार उत्तराखंड में विधायक चुने गए। उनकी व्यवहार कुशलता ने उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी। आज राजनीति के महारथी इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए।
हरबंस कपूर का जन्म 1946 में उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ था। उनका परिवार भारत विभाजन के बाद देहरादून में बस गया। हरबंस कपूर की प्रारंभिक शिक्षा शिक्षा सेंट जोसेफ अकादमी देहरादून में हुई। इसके बाद उन्होंने डीएवी पीजी कालेज से कानून में स्नातक किया था।
हरबंस कपूर ने जमीनी स्तर के राजनेता के रूप में शुरुआत की। उन्हें 1985 में पहली हार मिली थी, जिसके बाद से ही वे कभी भी विधानसभा चुनाव नहीं हारे। 1989 में देहरादून निर्वाचन क्षेत्र से 10वीं उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में उत्तर प्रदेश विधानसभा में शामिल हुए, उसके बाद 11वीं विधानसभा, 12वीं विधानसभा और 13वीं विधानसभा में शामिल हुए।
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इतना ही नहीं उन्होंने 200 में अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भी अपनी जीत को बनाए रखा। इसके साथ ही स्थापना के बाद सभी चुनावों में अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखा। साल 2007 में उन्हें सर्वसम्मति से उत्तराखंड विधानसभा का अध्यक्ष भी चुना गया। वह उत्तराखंड बीजेपी के सबसे पुराने नेताओं में से एक हैं।