हिमालय के शांत आंचल के कण-कण में भगवान शंकर वास करते हैं। कैलाश के बारे में तो सभी जानते हैं। कहा जाता है कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव रहते हैं। ये भोलनाथ का सबसे पसंदीदा स्थान है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिमायल की गोद में चार और कैलाश हैं। जिन्हें मिलाकर पंच कैलाश (panch kailash) बनता है। कहा जाता है कि पूरी दुनिया में पांच कैलाश है। ये पांच कैलाश हैं (5 kailash names) कैलाश पर्वत, आदि कैलाश, शिखर कैलाश, किन्नौर कैलाश और मणिमहेश कैलाश। शिव भक्तों में इस पंच कैलाश की यात्रा का विशेष महत्व है। चलिए इस आर्टिकल में विस्तार से इन पांचों कैलाश के बारे में जानते है।
कैलाश मानसरोवर (kailash parvat)
सबसे पहले बात करते है कैलाश (kailash) के बारे में। कैलाश पर्वत(kailash parvat in india) जिसे भगवान शंकर का निवास स्थान भी कहा जाता है। ये प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर तिब्बत (kailash parvat kahan sthit hai) में स्थित है। पांच कैलाशों में ये सबसे ऊंचाई पर स्थित है। इसकी ऊंचाई 6638 मीटर है। हिंदू पौराणिक कथाओं की माने तो यहां पर भोलेनाथ ने काफी लंबे वक्त तक निवास किया था।
कहा ये भी जाता है कि इसी के पास कुबेर की नगरी, मानसरोवर झील और रक्षास्थल भी स्थित है। इसके ऊपर स्वर्ग तो वहीं नीचे मृत्युलोक है। इसे दुनिया की सबसे कठिन तीर्थ यात्राओं की श्रेणी में रखा गया है। हिमालय की हसिन वादियों में एक ऐसा मिस्टीरियस माउंटेन मौजूद है जहां आजतक कोई नहीं जा पाया। आज तक इस पर्वत पर कोई नहीं चढ़ पाया। जिसने भी इस पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की या तो वो रास्ता भटक गया या फिर कभी वापस ही नहीं आया। माना जाता है कि जीते जी कोई भी कैलाश की चोटी तक नहीं पहुंच सकता क्योंकि कैलाश पर्वत की चोटी तक पहुंचने का रास्ता मृत्यु के पार ही खुलता है।
इसके बारे में कहा जाता है कि 7 इम्मोर्टलस अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम आज भी साधना में लीन हैं। कुछ लोगों की मानें तो यहां थ्री डायमेंशन में चलने वाली हमारी ये दुनिया फोर्थ (4th) डायमेंशन में एंटर कर जाती है।
कैलाश की यात्रा (kailash parvat Yatra)
अगर आप भी कैलाश यात्रा करने की सोच रहे है तो आपको बता दें कि कैलाश जाने के लिए आपको पहले रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। अब कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए यात्रियों को चीन पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। अब भारत की जमीन से ही कैलाश पर्वत के दर्शन किए जा सकते हैं। भारत सरकार द्वारा हर साल जून से सितंबर के महीने में दो अलग-अलग मार्गों से ये यात्रा करवाई जाती है। एक लिपुलेख दर्रा, जो उत्तराखंड से जाती है। देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के ओल्ड लिपुलेख से अब कैलाश पर्वत के दर्शन हो सकेंगे। तो वहीं दूसरा मार्ग नाथू ला दर्रा जो सिक्किम से जाती है।
आदि कैलाश (Adi Kailash)
उत्तराखंड की सबसे खूबसूरत और पवित्र पर्वत चोटियों में से एक में आदि कैलाश (adi kailash) भी शामिल है। ये चोटी इतनी पवित्र है कि इसे भारत का कैलाश पर्वत माना जाता है। इसके साथ ही ये पंच कैलाश में से एक है। जो कि पंच कैलाश (panch kailash) में दूसरे स्थान पर आता है। जिसे छोटा कैलाश(Chota Kailash) या फिर शिव कैलाश भी कहा जाता है।
आदि कैलाश (adi kailash trek) जो कि छोटा कैलाश के नाम से भी जाना जाता है। ये पवित्र पर्वत हिंदुओं की आस्था का प्रतीक है। लोगों की इसके प्रति गहरी श्रद्धा है। आदि कैलाश भारत-तिब्बत सीमा के बिलकुल पास भारतीय सीमा क्षेत्र के अंदर है। ये उत्तराखंड राज्य में पिथौरागढ़ के जौलिंगकोंग में स्थित है। ऊंचाई की बात करें तो ये समुद्रतल से लगभग 5,945 मीटर ऊपर है। कहा जाता है कि जब बारात लेकर भोलेनाथ माता पार्वती से शादी करने आए थे, तब उन्होंने अपना पड़ाव आदि कैलाश पर डाला था।
देखने पर उत्तराखंड में मौजूद ये छोटा कैलाश आपको बिल्कुल कैलाश पर्वत जैसा दिखेगा। कैलाश पर्वत के जैसे दिखने के कारण कहा जाता है कि जो लोग कैलाश पर्वत की यात्रा पर किसी कारण से नहीं जा पाते तो वो लोग उत्तराखंड में स्थित आदि कैलाश की यात्रा कर सकते है। इससे वही पुण्य मिलेगा जो कि कैलाश के दर्शन करने से मिलता है। आदि कैलाश की यात्रा के लिए धारचूला के एसडीएम से बिना इनर लाइन परमिट बनवाए नहीं जा सकते।
आदि कैलाश की यात्रा कैसे करें? (adi kailash yatra)
बता दें कि पिथौरागढ़ से 90 किलोमीटर दूर धारचूला पहुंचने के बाद यात्रियों का स्वास्थ्य परीक्षण होता है। जिसके बाद उन्हें इनर लाइन परमिट जारी होता है।
किन्नर कैलाश (Kinnaur Kailash)
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में मौजूद किन्नर कैलाश की ऊंचाई समुद्रतल से 6050 मीटर ऊपर है। पौराणिक मान्यता की माने तो देवी पार्वती ने किन्नर कैलाश में पूजा के लिए एक सरोवर बनाया था। जिसके कारण इसे पार्वती सरोवर के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि ये वहीं स्थान है जहां भोलेनाथ और पार्वती का मिलन हुआ था।
स्थानीय लोगों की माने तो एक पक्षी का जोड़ा इस पर्वत की चोटी पर रहता है। इस पक्षी के जोड़े को लोग माता पार्वती और भगवान शिव मानते हैं। आश्चर्यजनक बात तो ये है कि यहां पर सर्दियों में भारी बर्फबारी होती है। लेकिन किन्नर कैलाश कभी भी बर्फ से ढ़का हुआ नहीं दिखता। यहां पर ब्रह्मकमल के हाजारों पौधे प्राकृतिक रूप से उगते है। यहां मौजूद प्राकृतिक शिवलिंग कई बार दिन में अपना रंग बदलते हैं। इस शिवलिंग की हाइट करीब 40 फीट ऊंची और 16 फीट चौढ़ी है।
किन्नर कैलाश कैसे पहुंचे? (Kinnaur Kailash Yatra)
किन्नर कैलाश की यात्रा के लिए आपको किन्नोर जिले से सात किलोमीटर दूर पोवरी से सतलुज नदी पार तंगलिंग गांव पहुंचना होगा।वहां से 24 घंटे की कठिन पैदल यात्रा करनी पड़ेगी।
श्रीखंड कैलाश या शिखर कैलाश (Shikhar Kailash or Shrikhand Kailash)
पंच कैलाशों (panch kailash) में से श्रीखंड कैलाश एक दिव्य स्थान है। मान्यता है कि इस पवित्र भूमि पर भगवान शिव अपने पूरे परिवार के साथ विराजते हैं। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में बसा श्रीखंड कैलाश जितना श्रद्धालुओं के बीच फेमस है उतना ही ये ट्रैकर्स को भी लुभाता है।
किवदंती के मुताबिक कहा जाता है भस्मासुर नाम के असुर से बचने के लिए भगवान शंकर श्रीखंड पहुंचे और यहां एक शिला के रुप में विराजमान हो गए। भस्मासुर के भस्म होने के बाद भी जब भगवान शंकर शिला से बाहर नहीं आए तब भगवान शंकर के दोनों पुत्र गणेश, कार्तिकेय और माता पार्वती ने इस जगह पर घोर तपस्या की जिसके बाद महादेव श्रीखंड चट्टान को खंडित कर बाहर आए।
श्रीखंड कैलाश कैसे पहुंचे? (Shrikhand Kailash Yatra)
श्रीखंड का ट्रैक जितना मुश्किल है उतना ही खूबसूरत भी। हर साल श्रीखंड कैलाश की यात्रा सावन के महिने में आधिकारिक तौर पर सिर्फ 2 हफ्तों के लिए खुलती है। यात्रा के लिए पंजीकरण जरूरी है जिसका शुल्क महज 50 रुपये होता है। स्थानियों और गद्दियों के मुताबिक श्रीखंड महादेव जाने के 6 अलग-अलग रास्ते हैं।
- पहला रास्ता निरमंड – बागीपुल और जाओं होते हुए जाता है। ये रास्ता श्रीखंड महादेव पहुंचने का सबसे आसान रास्ता भी है। जाओं गांव से शुरु इस रास्ते से श्रीखंड महादेव की दूरी लगभग 25.5 किमी है।
- इसका दूसरा रास्ता ज्यूरी – फांचा
ज्यूरी से शुरु होने वाला ये रास्ता सीधी चढ़ाई और बर्फ से भरा है। जो इस रास्ते को और भी ज्यादा कठिन बनाता है - तीसरा रास्ता बंजार – बठाहड
बठाहड़ से शुरू होने वाला ये रास्ता बाकी रास्तों से थोड़ा आसान है। - चौथा रास्ता गुशैणी – बनायाग मार्ग
गुशैणी से शुरु होता ये बेहद खतरनाक और ऐडवेंचरस भी है। ये रास्ता आपको सीधे कार्तिक स्वामी पर्वत के आधार के पास पहुंचाता है और कार्तिक स्वामी से ये रास्ता सीधा श्रीखंड पर्वत के पीछे से ऊपर जाता है। - पांचवां रास्ता झाकड़ी – श्रीखंड महादेव
ये रास्ता झाकड़ी से शुरु होता है हालांकि इसे ज्यादातर स्थानिय लोग ही इस्तेमाल करते हैं और ज्यादा लोगों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है - छठा रास्ता खीरगंगा – श्रीखंड मार्ग
ये रास्ता वक्त के साथ ग्लेशियरों के नीचे दब चुका है और अब सिर्फ एक बोर्ड इसके अस्तित्व की गवाही देता है।
अगर आप श्रीखंड कैलाश जाने का प्लान कर रहे हैं तो आप अपने साथ गर्म कपड़े, सॉक्स, टॉर्च, डंड़ा और जरूरी दवाएं ले जाना बिल्कुल ना भूलें
मणिमहेश कैलाश (Manimahesh Kailash)
अब बात करते हैं हिमाचल में 18,564 फीट (5653 मीटर) की ऊंचाई पर बसे पंच कैलाश (panch kailash)में से एक मणिमहेश कैलाश की। ये कैलाश हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित है। कहते हैं की आजतक कोई भी व्यक्ति यहां तक की जीव जंतु तक इस पहाड़ पर चढ़ने में कामयाब नहीं हो पाया है। स्थानीय इस पर्वत के आधार पर बर्फ के मैदान को शिव का चौगना कहते हैं।
माना जाता है आज तक जिसने भी इस पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की वो पत्थर में तबदील हो गया। मान्यता है कि इस दुनिया में सात कैलाश पर्वत हैं और उन्हीं में से एक पर्वत है मणिमहेश कैलाश है। मणिमहेश कैलाश हिमालय की धौलाधार, पांगी और जांस्कर श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है। कहा जाता है कि माता पार्वती से विवाह से पहले भगवान शंकर ने इस पर्वत को बनाया था। मान्यता है कि यहां शिव अक्सर अपनी पत्नी के साथ घूमने आते है।
मणिमहेश कैलाश कैसे पहुंचे? (Manimahesh Kailash Yatra)
यहां पहुंचने के लिए आप अलग-अलग रास्ते ले सकते है। यहां की यात्रा लाहौल-स्पीति की तरफ से कुगति पास से होती है। इसके अलावा कुछ लोग कवारसी या फिर जलसू पास के बीच से कांगड़ा और मंडी से भी जाते हैं। इसका सबसे आसान रास्ता भरमौर से होकर जाता है जो चंबा से है।