AIMIM चीफ ओवैसी ने नागरिकता संसोधन कानून (CAA) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में ओवैसी ने नागरिकता संसोधन कानून को लागू करने पर रोक लगाने की मांग की है। इंडियन मुस्लिम लीग ने भी सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। हाल ही में सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर देशभर में सीएए लागू कर दिया है।
सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने पर ओवैसी ने कहा कि, हमारा मामला सुप्रीम कोर्ट में है। सरकार ने कहा कि नोटिफिकेशन जारी हो गया है। ऐसे में हमारे लिए सुप्रीम कोर्ट जाना जरुरी हो गया है। अगर सरकार ने इस असंवैधानिक कानून के आधार पर नागरिकता देनी शुरु कर दी तो यह नुकसानदायक हो सकता है। सरकार का कहना है कि अगर आप इस्लाम को मानने वाले हैं तो आपको नागरिकता नहीं देंगे। हम इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए हैं।
क्या कहा ओवैसी ने?
ओवैसी ने कहा कि सरकार ने 2019 में कानून पास किया था और सरकार ने इसे ऐसे ही रखा और जब चुनाव का ऐलान होने वाला था तो चुनाव को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इसे लागू कर दिया। भाजपा सरकार चाहती है कि गरीब और मुसलमान बिना किसी देश के रहें। किसी को भी सीएए को एनपीआर और एनआरसी से अलग करके नहीं देखना चाहिए। गृह मंत्री को बताना चाहिए कि क्या उन्होनें नहीं कहा था कि सीएए के बाद एनआरसी लागू होगा?
याचिका में ओवैसी ने क्या मांग की है?
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में ओवैसी ने मांग की है कि सीएए कानून के तहत सरकार किसी को भी नागरिकता संसोधन कानून की धारा 6बी के तहत नागरिकता प्रदान न करें। सीएए के खिलाफ दायर याचिकाओं में सीएए कानून को संविधान के खिलाफ और भेदभावपूर्ण बताया गया है। शीर्ष अदालत में नागरिकता संशोधन कानून 2019 के खिलाफ 200 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं। सीएए कानून को साल 2019 में ही संसद से मंजूरी मिली थी और उसके बाद से ही इस कानून का विरोध हो रहा है।
क्यों हो रहा CAA का विरोध?
बता दें कि नागरिकता संसोधन कानून 2019 के तहत सरकार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आने वाले शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। इस कानून के तहत हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध पारसी और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है, लेकिन इस कानून से मुस्लिम वर्ग को बाहर रखा गया है। इसी वजह से इस कानून का विरोध हो रहा है। कानून का विरोध करने वाले लोगों का आरोप है कि इसमें धर्म के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है, जो कि भारतीय संविधान के खिलाफ है। हालांकि सरकार का तर्क है कि सीएए में किसी की नागरिकता छीनने का प्रावधान नहीं है और सरकार ने साफ कहा है कि सीएए कानून वापस नहीं होगा।