आपने मां भगवती के किसी ऐसे धाम के बारे में सुना है जहां देवी एक दिन में तीन बार रूप बदलती है। जहां पेड़ों के झुरमुट में शेर की आकृति दिखाई देती है। सुनकर आपको भी यकीन नहीं हो रहा होगा लेकिन देवभूमि उत्तराखंड में ऐसा मंदिर है। जहां माता रानी की मूर्ति तीन बार रंग बदलती है और जहां मां का धाम है उस पहाड़ी पर दूर से शेर की आकृति दिखाई देती है।
अल्मोड़ा में स्थित है मां स्याही देवी का रहस्यमयी धाम
मां स्याही देवी का मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। ये मंदिर अल्मोड़ा शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर हवालबाग ब्लॉक के शीतलाखेत की ऊंची पहाड़ियों पर स्याही देवी मंदिर विराजती हैं। इन्हें शाही देवी के नाम से भी जाना जाता है। कत्यूरी शासन काल में इन्हें शाही देवी के नाम से जाना जाता था। समय के साथ अपभ्रंश होकर मां के नाम स्याही देवी बन गया।
एक ही रात में बनाया गया था मंदिर
उत्तराखंड के कत्यूरी राजवंश के बारे में कहा जाता है कि इनके राज में जो मंदिर बने हैं उनमें से ज्यादातर एक ही रात में बनाए गए थे। वैसे ही स्याही देवी मंदिर के लिए भी कहा जाता है कि ये मंदिर भी एक ही रात में बनाया गया था। स्याही देवी मंदिर के पुजारी के मुताबिक यहां स्थापित होने से पहले मां स्याही देवी इस जगह से आधा किलोमीटर दूर घने जंगल में स्थापित थी।
जहां किसी जमाने में बड़े-बड़े तपस्वियों और संतों ने तप किया था। जिनमें स्वामी विवेकानंद, हैड़ाखान बाबा, सोमवारी बाबा जैसे तपस्वी शामिल हैं। फिर देवी मां को कत्यूरी राजाओं ने उस जंगल से लाकर वर्तमान के स्याही देवी परिसर में स्थापित किया। कत्यूरी राजाओं ने यहां मां के लिए सवासेर भोग कि व्यवस्था भी करवाई थी और ये व्यवस्था आज भी जारी है।
पहाड़ पर पेड़ों से बनी दिखती है शेर की आकृति
स्याही देवी मंदिर को अगर आप दूर कहीं से देखेंगे तो आपको इस पहाड़ पर पेड़ों से बनी हुई शेर कि आकृति दिखाई देगी। अंग्रेजी राज के दौरान इसी आकृति के कारण अंग्रेज इस पहाड़ को टाईगर हिल के नाम से जानते थे। तब से अब तक इन पेड़ों की आकृति ऐसी ही है ये इतने सालों बाद भी ये आकृति नहीं बदली है। स्थानीय लोग इसे माता रानी का ही चमत्कार मानते हैं।
क्या है माता स्याही देवी कि मूर्ति का रहस्य ?
स्याही देवी की मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि ये मूर्ति दिन में तीन बार अपना रंग-रूप तीन बार बदलती है। इस बारे में मंदिर के पुजारी का कहना है कि इस मंदिर में माता रानी अपना रुप एक दिन में तीन बार बदलती है। सुबह के समय माता का रुप सुनहरा, दिन में मां काली कि तरह काला और शाम को सांवला हो जाता है। ऐसा नजारा शायद ही कभी किसी ने देखा हो। माता रानी के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं।
स्याही देवी मंदिर में साल भर काफी संख्या में श्रद्घालु आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो भी सच्चे मन से मां के चरणों में मन्नत मांगता है उसकी सारी मुरादें पूरी होती हैं। मनोकामना पूरी होने के बाद लोग इस मंदिर में घंटियां चढ़ाते हैं। इसके साथ ही भंडारा करवाते हैं। लोगों कि माता पर आस्था का अंदाजा आप मंदिर के प्रांगण में टंगी घंटियों को देखकर ही लगा सकते हैं।
मंदिर परिसर से दिखता है अद्भुत दृश्य
माता रानी का मंदिर जिस स्थान पर स्थित है वो स्थान अत्यंत रमणीक है। ये स्थान अपने मौसम, स्थान और दृश्यों के लिए अद्भुत है। यहां से आप नंदा देवी पर्वत श्रृखंला का मनोरम दृश्य देख सकते हैं।
इसके साथ ही अगर आप सर्दियों में यहां जाते हैं तो आपको यहां पर बर्फबारी का आनंद लेने को भी मिल सकता है। बता दें कि शीतलाखेत की पहाड़ी को इस क्षेत्र में नदियों और गांवों के लिए पानी का बारहमासी स्रोत भी कहा जाता है।
ये स्थान अल्मोड़ा से अधिक ऊंचाई पर है। यहां पर सर्दियों में बर्फबारी होती है। बर्फबारी के बाद मंदिर के आसपास का दृश्य देखने लायक होता है। मंदिर के आस-पास के क्षेत्र में हर साल कई फीट तक की बर्फबारी होती है। बर्फ से ढकी पहाड़ियों को देख आप खुद को इन तस्वीरों को कैमरे में कैद करने से खुद को रोक नहीं पाएंगे।
कैसे पहुंचे स्याही देवी मंदिर शीतलाखेत ?
शीतलाखेत अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर और रानीखेत से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां आप अल्मोड़ा या रानीखेत दोनों स्थानों के रास्ते से पहुंच सकते हैं। लेकिन ये दूरी सिर्फ पहाड़ी की तलहटी में बसे गांव के लिए है। स्याही देवी मंदिर इस गांव की चोटी पर स्थित है। जो कि गांव से पांच किलोमीटर की दूरी पर है।
मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको पांच किमी तक पैदल यात्रा करनी पड़ेगी। अगर आप गांव से ट्रेक करते हैं तो लगभग डेढ़ घंटे का ट्रेक कर आप मंदिर तक पहुंचेंगे। लेकिन आधे रास्ते तक टू व्हीलर लेकर आप कम समय में मंदिर तक पहुंच सकते हैं।