आशीष तिवारी। उत्तराखंड के राजनीतिक गलियारों से उठा तूफान राज्य की अफसरशाही में हलचल लाएगा इसकी उम्मीद सभी को थी लेकिन ये हलचल भूचाल सा कंपन पैदा करेगा और कई पुरानी इमारतों को हिला देगा इसकी उम्मीद शायद ही किसी ने की हो। और वो भी तब जब मुख्यमंत्री को कम अनुभवी बताया जा रहा हो।
राज्य के निर्माण से ही हैवेन ऑफ ब्यूरोक्रेट्स के तौर पर साबित होने वाले उत्तराखंड में शायद ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगाने का अब तक का सबसे बड़ा कदम राज्य का सबसे युवा मुख्यमंत्री उठा रहा है। देश के तेजतर्रार आईएएस अफसरों में शुमार सुखबीर सिंह संधु की उत्तराखंड वापसी इसी की आहट है। अब जब सुखबीर सिंह संधु को केंद्र से रिलीव करने का आदेश जारी हो चुका है तो ये तय मानिए कि उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी में कुछ बड़ा होने वाला है।
चर्चा में रही है ब्यूरोक्रेसी
राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड की ब्यूरोक्रेसी हमेशा चर्चाओं में रही है। कई बार ये चर्चाएं होती रहीं हैं कि पार्टी सरकार बनाती है और अफसर सरकार चलाते हैं। पिछले चार सालों में भी कमोबेश यही हालात रहे। त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास बहुमत तो प्रचंड था लेकिन अफसरशाही पर वो बहुमत मानों लागू नहीं होता था। इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि त्रिवेंद्र सरकार में राज्यमंत्री और आईएएस के बीच तकरार में भी सरकार कोई सख्त कदम नहीं उठा पाई। ऐसे एक नहीं कई मामले हैं जिन्हें गिनाया जा सकता है। फिर त्रिवेंद्र पर भी कुछ खास अफसरों के इर्दगिर्द घिरे रहने और उनके ही सलाह पर आगे बढ़ने की चर्चाएं होती रहीं।
तीरथ सिंह रावत ने भी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कोई खास फेरबदल नहीं किया। कुछ बदलाव जरूर हुए लेकिन मठाधीश अफसर अपनी कुर्सियों पर जमे रहे। फिर सचिवालय के गलियारों में सरकार के बदलने की जो सख्ती दिखनी चाहिए थी वो भी नहीं दिखी।
अब हिसाब सबका होगा
हालांकि पुष्कर सिंह धामी ने अफसरशाही को लेकर किए अपने पहले ही फैसले से साफ कर दिया है वो ब्यूरोक्रेसी को खुली छूट तो नहीं देने वाले। सुखबीर संधु को न सिर्फ तेजतर्रार माना जाता है बल्कि वो अफसरों के भी अफसर माने जाते हैं। संधु, नियमों और काएदों के सख्त, समयबद्ध और रिजल्ट ओरिएंटेड टास्क के साथ ही गुटबाजी और लॉबिंग से दूर रहने वाले आईएएस अफसर हैं।
जो कयास हैं उनके मुताबिक अगर सुखबीर सिंह संधु अगर राज्य के मुख्य सचिव बनते हैं तो चौथे तल पर धमक के साथ पहुंचने वाले कई अफसरों की कुर्सी भी डोलेगी और अब उनसे काम का हिसाब भी मांगा जाएगा। फिलहाल तय मानिए की युवा मुख्यमंत्री ने बुजुर्गों से अधिक साहस दिखा ब्यूरोक्रेसी पर लगाम का मास्टरस्ट्रोक चल दिया है।