आशीष तिवारी। उत्तराखंड में कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनावों की ‘तैयारी’ में लग गई है। दो महीने की ‘कड़ी मशक्कत’ के बाद कांग्रेस एक छोटे प्रदेश में बड़े नेताओं के बीच से एक बहुत बड़ा नेता तलाश लाई है। ये तलाश इतनी भी ‘कठिन’ होगी इस बारे में कांग्रेसियों को भी आभास नहीं रहा होगा।
हालांकि उत्तराखंड कांग्रेस में सबकुछ देहरादून के मौसम की तरह होता है, बिल्कुल ‘अनपिरिडक्टेबल’। कब, कौन, कैसे, कहां, क्यों वगैरह वगैरह का स्पेस बनाए रखने की कोई गुंजाइश नहीं। आपके पास सिर्फ फैसले को सुनने का विकल्प होता है।
इस अनपिरेडेक्टेबल सिचुएशेन का अपना एक मजा भी है। या यूं कहिए कि आप जिसे अनपिरेडेक्टेबल समझ रहें हों उसको पिरेडक्ट करने की कोई वजह ही न हो। हो सकता है ये सबकुछ अब आपको कुछ कॉम्प्लीकेटेड लगने लगा हो लेकिन ईजी सिचुएशन को समझने के लिए कुछ जटिलताएं झेलनी पड़ती हैं।
दरअसल उत्तराखंड में कांग्रेस के पास दो ‘चुनौतियां’ थीं। एक चुनौती विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष चुनने की और दूसरी प्रदेश अध्यक्ष चुनने की।
ये चुनौती इसलिए क्योंकि कांग्रेस में कार्यकर्ता कम और नेता अधिक हैं लिहाजा दावेदारियां, जिम्मेदारियों से अधिक होती हैं। फिर पार्टी का आलाकमान अपना ‘टाइम’ तो लेता ही है। ये टाइम ऐसा होता है कि सबको लगने लगता है कि ‘अपना टाइम आएगा’ लेकिन होता वही है जो ‘आलाकमान रचि राखा’।
आलाकमान ने फैसला सुनाया और गणेश गोदियाल अध्यक्ष बने और अध्यक्ष की कुर्सी से प्रीत निभा रहे प्रीतम को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया। सबकुछ ‘अनपिरेडेक्टेबल’ सा लगा। हालांकि लगा कम और दिखाने की कोशिश अधिक हुई। खबरनवीस जानते थे कि होना वही है जो पिरेडेक्टेबल है।
अब आइए मसले पर। बात शेर की। उस शेर की जो कांग्रेस का है और वो बूढ़ा भी नहीं हुआ है। ये बात इसलिए कह सकते हैं कि क्योंकि कांग्रेस ने अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के साथ ही कई चुनावी कमेटियों का भी ऐलान किया है। कांग्रेस ने चुनावी कैंपेन कमेटी की कमान कांग्रेस के शेर (बूढ़ा नहीं) हरीश रावत को सौंपी है। जाहिर है कि युवा राहुल को हरीश रावत में अब भी वही जोश दिखता होगा जिसकी जरूरत राज्य में कांग्रेस को जीत की संजीवनी के लिए है।
वैसे जो लोग उत्तराखंड में कांग्रेस को समझते बूझते हैं वो ये भी जानते हैं कि यहां कुछ भी अनपिरेडेक्टेबल नहीं है बल्कि प्रीप्लान्ड है। इस प्लानिंग का बड़ा हिस्सा उसी थिंक टैंक रूपी शेर के दिमाग में है जो अब चुनावी जंग में अपनी कमेटी की कमान को थामे तीर चलाएगा। जिन्होंने पिछले एक दशक के दौरान उत्तराखंड में कांग्रेस की राजनीति को देखा होगा वो ये जरूर समझते होंगे कि हरीश रावत जब सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात करते हैं तो उसके क्या माएने होते हैं। फिलहाल कांग्रेस में नया जोश तो दिख ही रहा है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। अब इंतजार उस शेर के मैदान में आने का है जो कभी बूढ़ा नहीं होगा।