ओडिशा में सरकारी और निजों बसों में अगर महिला यात्री पहले चढ़ जाए तो इसे अपशकुन माना जाता है इसलिए वहां पहले कभी भी महिला को नहीं चढ़ने दिया जाता। हालांकि अब इस पर ओडिशा राज्य महिला आयोग ने संज्ञान लिया है और राज्य परिवहन विभाग पर जोर देकर कहा है कि इस प्रथा को समाप्त किया जाए।
बता दें कि इस बात की कार्रवाई सामाजिक कार्यकर्ता घासीरान पांडा की याचिका के बाद शुरू हुई। उन्होंनें एक महिला को भुवनेश्वर के बारामुंडा बस स्टैंड पर बस में चढ़ने से मना कर दिया था क्योंकि उससे पहले कोई भी पुरूष नहीं चढ़ा था और वह महिला तभी बस में चढ़ सकती थी जब कोई पुरुष बस में प्रवेश कर लें।
महिला को माना अपशकुन
बताया जा रहा है कि कंडक्टर ने महिला को यह कहकर मना किया कि उसके पहले बस में चढ़ने से कोई दुर्घटना हो सकती है। इस भेदभाव को तोड़ने के लिए ओएससीडब्ल्यू ने राज् परिवहन विभाग से कार्रवाई करने को कहा है।
आयोग ने परिवहन आयुक्त को लिखे पत्र में कहा
इस मामले को लेकर आयोग ने 26 जुलाई को परिवहन आयुक्त सह अध्यक्ष को लिखे पत्र में कहा कि इस प्रकार की घटनाएं पहले भी हमारी जानकारी में आई हैं। इसलिए महिला यात्रियों को भविष्य में होने वाली असुविधाओं से बचने और उनकी सुरक्षा की रक्षा के लिए और गरिमा, मैं आपसे यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करना चाहूंगा कि बसों में महिलाओं को पहले यात्री के रूप में अनुमति दी जाए।
50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए हो आरक्षित
वहीं आयोग ने यह भी सुक्षाव दिया है कि परिवहन विभाग महिला यात्रियों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित करे। अधिकारी ने कहा कि परिवहन विभाग बस मालिकों से अपने कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने के लिए कहेगा। बस में महिलाओं के साथ भेदभाव करना गलत है। उन्हें पहली प्राथमिकता मिलनी चाहिए।