ओडिशा के बालेश्वर में हुए रेल हादसे मे कई मौते और हजारों लोग घायल हुए हैं। वहीं इस हादसे के बाद विपक्ष ने मोदी सरकार पर कई तरह के सवाल उठाए हैं। विपक्ष लगातार उस रेलवे तकनीक की बात कर रहा है जिसे कुछ समय पहले रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने डैमो के दौरान दिखाया था। वहीं सवाल रेलवे के कवच प्रोजेक्ट को लेकर भी पूछे जा रहे हैं। आखिर क्यों इसे इस ट्रैक पर नहीं लगाया गया।
यात्रियों की सुरक्षा बढ़ाने में मददगार है कवच
रेलवे में ट्रेन में प्रयोग होने वाला कवच ट्रेन की टक्कर के खतरे को कम करके यात्रियों की सुरक्षा बढ़ाने में मदद कर सकता है। यह उन यात्रियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो लंबी दूरी की ट्रेनों में यात्रा करते हैं। कवच भारतीय रेलवे के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा सुधार है। इसमें जान बचाने और ट्रेन दुर्घटनाओं की संख्या को कम करने की क्षमता है।
क्या है रेलवे का कवच प्रोटेक्शन सिस्टम
जानकारी दें दे की कवच एक ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है, जिस पर काम भारतीय रेलवे ने साल 2012 में शुरू किया था। इस सिस्टम को विकसित करने के पीछे भारतीय रेलवे का उद्देश्य जीरो एक्सीडेंट का लक्ष्य हासिल करना है। इसका पहला ट्रायल साल 2016 में किया गया था। पिछले साल इसका लाइव डेमो भी दिखाया गया था।
‘कवच’ से नहीं होती ट्रेनों की टक्कर
दरअसल, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बीते दिनों राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि भारतीय रेलवे ने दुर्घटना रोकने के लिए एक प्रणाली ‘कवच’ को चरणबद्ध तरीके से देशभर में लागू किया है जिसकी मदद से ट्रेनों की टक्कर को रोका जा सकता है। जानकारी के मुताबिक रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन ने दक्षिण मध्य रेलवे पर 1,455 रूट किलोमीटर पर कवच लगा दिया है और बाकी काम चल रहा है। बता दें कि रेल पटरियों पर होने वाले हादसों को रोकने के लिए रेलवे बोर्ड ने 34,000 किलोमीटर रेल मार्ग के साथ कवच तकनीक को मंजूरी दी थी, जिसके तहत लक्ष्य रखा गया था कि मार्च 2024 तक सबसे ज्यादा बिजी रहने वाली ट्रेन लाइनों पर कवच लगा दिया जाएगा। ये कवच ट्रेन के आमने-सामने आने पर कंट्रोल कर उसे पीछे ले जाता है और इसके जरिए यदि लोको पायलट ब्रेक लगाने में फेल हो जाता है तो इस प्रणाली से स्वचलित रूप से ब्रेक लग जाते हैं।
कैसे काम करता है कवच?
ये सिस्टम कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस का सेट है। इसमें रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइसेस को ट्रेन, ट्रैक, रेलवे सिग्नल सिस्टम और हर स्टेशन पर एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है। ये सिस्टम दूसरे कंपोनेंट्स से अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए कम्युनिकेट करता है। जैसे ही कोई लोको पायलट किसी सिग्नल को जंप करता है, तो कवच एक्टिव हो जाता है। इसके बाद सिस्टम लोको पायलट को अलर्ट करता है और फिर ट्रेन के ब्रेक्स का कंट्रोल हासिल कर लेता है। जैसे ही सिस्टम को पता चलता है कि ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही है, तो वो पहली ट्रेन के मूवमेंट को रोक देता है। सिस्टम लगातार ट्रेन की मूवमेंट को मॉनिटर करता है और इसके सिग्नल भेजता रहता है। दरअसल, इस कवच सिस्टम को अभी सभी रूट्स पर इंस्टॉल नहीं किया गया है। इसे अलग-अलग जोन में धीरे-धीरे इंस्टॉल किया जा रहा है।