देश में जब भी लोकसभा के चुनाव होते हैं तब तब कुछ ऐसी सीटें हैं जिनकी चर्चा खूब होती है। चुनावी समर में उतरी राजनीतिक पार्टियों के लिए जहां ये सीटें अहम होती हैं वहीं यहां से चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के लिए पहचान से जुड़ा मसला। ऐसी ही सीट है अमेठी। ये वो सीट हैं जो गांधी परिवार की सियासी पहचान से जुड़ी हुईं हैं। आइये जानते हैं कैसे अमेठी कांग्रेस का गढ़ बनी और उनकी पहचान से जुड़ती गईं।
अमेठी लोकसभा सीट
साल 1967 में अमेठी लोकसभा सीट अस्तित्व में आई। अमेठी कांग्रेस के दिग्गज राजनेताओं की कर्म भूमि मानी जाती है। इस सीट से संजय गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी जैसे नेताओं ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की थी।
1967 से पहले अमेठी संसदीय सीट अस्तित्व में ही नहीं थी दरअसल देश में 1952 में हुए पहले आम चुनावों में अमेठी सुल्तानपुर साउथ संसदीय सीट का हिस्सा था। इसके बाद 1957 में ये अमेठी को मुसाफिरखाना संसदीय सीट के अंतर्गत रखा गया। हालांकि साल 1967 में अमेठी एक अलग संसदीट सीट के तौर पर आस्तित्व में आ गई।
1957 में कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी बने सांसद
साल 1957 में अमेठी लोकसभा सीट अस्तित्व में आई और इस नई सीट पर कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी सांसद बन कर आए। उस वक्त उन्होंने बीजेपी के गोकुल प्रसाद पाठक को 3,665 वोटों के अंतर से हराया था। इसके बाद 1971 में विद्याधर वाजपेयी दोबारा अमेठी के सांसद बने।
1977 में हार गए थे संजय गांधी
साल 1977 के लोकसभा चुनाव में सबसे पहली बार इस सीट पर गांधी नेहरू परिवार के संजय गांधी ने चुनाव लड़ा। लिहाजा उस वक्त आपातकाल और नसबंदी जैसे अभियानों से निराश जनता ने उनपर अपना विश्वास नहीं जताया और इस चुनाव में वो जनता पार्टी के रविद्र प्रताप सिंह से हार गए।
1980 में गांधी परिवार की पहली जीत
अब साल 1980 में ये गैर कांग्रेसी सरकार गिर गई जिसके बाद एक बार फिर चुनाव हुए। इस बार भी दोनों विपक्षी संजय गांधी और रविंद्र प्रताप आमने सामने थे इस चुनाव में। संजय गांधी ने अपनी हार का बदला लेते हुए विपक्षी रविंद्र प्रताप को 1,28,545 वोटों के अंतर से हरा दिया। इस सीट पर ये गांधी परिवार की पहली जीत थी।
बता दें, अमेठी की इस सीट को संजय गांधी की राजनीतिक ज़मीन माना जाता है। आपको ये जानकर हैरानी होगी की साल 1971 के दौरान जब इस सीट पर विद्याधर वाजपेयी कांग्रेस पार्टी से सांसद थे तो उन्हें पता चला की संजय गांधी राजनीति में आ रहे हैं उस वक्त उन्होंने संजय गांधी को एक तौर से गोद लिया। साथ ही एक सार्वजनिक घोषणा भी की कि वो अपनी सीट संजय गांधी के लिए छोड़ रहे हैं।
साल 1991 में संजय गांधी की हत्या हो गई। इसके बाद उनके करीबी सतीश शर्मा पर कांग्रेस ने विश्वास जताया। साल 1996 के चुनाव में सतीश शर्मा कांग्रेस के इस विश्वास पे खरे भी उतरे जब उन्होंने 40 हजार वोटों से ये अमेठी सीट जीत ली। हालांकी इसके बाद साल 1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के संजय सिंह ने सतीश शर्मा को 23 हजार के अंतर से हरा दिया।
1999 में जीती सोनिया गांधी
इसके अगले साल देश में एक बार फिर आम चुनाव हुए इस बार कांग्रेस से खुद सोनिया गांधी पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर मैदान में उतरी और साल 1999 में सोनिया गांधी ने एक बार फिर इस सीट पर गांधी परिवार का परचम लहराया।
2004 में जीते राहुल गांधी
बात करें राहुल गांधी की तो इनके भी चुनावी सफर की स्टाटींग इसी सीट से हुई थी राहुल गांधी ने साल 2004 में इसी अमेठी सीट से चुनाव लड़ था। जिसमें उन्हें जीत मिली और साल 2009 के आमचुनाव तक उन्होंने इस सीट पर गांधी परिवार का दबदबा कायम रखा।
2019 में जीती बीजेपी की स्मृति ईरानी
अब साल 2014 में देश में मोदी की लहर चली लेकिन फिर भी गांधी परिवार अपने गढ़ को बचाने में कामयाब रहा लिहाजा इस बार कांग्रेस की जीत का अंतर काफी था। लेकिन साल 2019 के लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार कांग्रेस की गढ़ मानी जाने वाली अमेठी सीट को नहीं बचा पाया और इस चुनाव में स्मृति ईरानी चुनाव जीत गई और कांग्रेस को अपना गढ़ मानी जाने वाली इस से हाथ धोना पड़ा।