केदारनाथ उपचुनावों की तारीखों की घोषणा होते ही केदारनाथ घाटी की सर्द फिजाओं में राजनीति गरमा गई है। केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र उत्तराखंड राज्य के 70 विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत के निधन के बाद ये सीट खाली हो गई है। जिस कारण यहां पर उपचुनाव हो रहा है।
केदारनाथ विधानसभा सीट से जुड़े फैक्टस
केदारनाथ विधानसभा सीट सामान्य श्रेणी की सीट है। ये रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है जो कि गढ़वाल संसदीय सीट के अंतगर्त आती है। चुनाव आयोग के मुताबिक केदारनाथ विधानसभा में कुल 90 हजार 540 मतदाता इस बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इन मतदाताओं में 44 हजार 765 पुरुष मतदाता हैं, जबकि 45 हजार 565 महिला मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगी।
बात करें मतदाताओं के प्रतिशत की तो केदारनाथ विधानसभा में अनुसूचित जाति के मतदाता लगभग 18,150 हैं। जो कि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक लगभग 20.32% है। अनुसूचित जनजाति के मतदाता लगभग 152 हैं। साल 2011 की जगनणना के मुताबिक इनका प्रतिशत लगभग 0.17% है। वहीं ग्रामीण मतदाता 88,858 हैं जिनका प्रतिशत 99.48% है और शहरी मतदाता लगभग 464 हैं जिनका प्रतिशत 0.52% है।
केदारनाथ विधानसभा सीट का इतिहास
उत्तराखंड गठन के बाद हुए सबसे पहले विधानसभा चुनाव में साल 2002 में इस सीट से भाजपा की आशा नौटियाल ने जीत हासिल की। उन्होंने कांग्रेस की शैलारानी रावत को हराया था। इसी के साथ आशा नौटियाल इस सीट पर विधायक बनने वाली पहली महिला बन गई।
साल 2007 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा की आशा नौटियाल और कांग्रेस के कुंवर सिंह नेगी आमने-सामने थे। इस चुनाव में भी भाजपा की जीत हुई है और आशा रानी रावत विधायक बनी। साल 2012 में इस सीट का सीमांकन फिर से किया गया। इस बार चुनाव में बीजेपी का विजय रथ रूक गया। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से शैलारानी रावत और बीजेपी से आशा नौटियाल एक बार फिर से मैदान में उतरे। जिसमें कांग्रेस से शैलारानी रावत ने जीत दर्ज की। आशा नौटियाल को हराकर शैलारानी रावत ने साल 1989 के बाद पहली बार कांग्रेस को इस सीट पर जीत दिलाई थी।
मोदी लहर में भी कांग्रेस ने दर्ज की थी जीत
केदारनाथ विधानसभा सीट पर साल 2017 के विधानसभा चुनावों में जब पूरे देश में मोदी लहर थी तब भी कांग्रेस प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। दरअसल साल 2016 में कांग्रेस में बगावत हुई और कांग्रेस की शैलारानी रावत ने भी भाजपा का दामन थाम लिया था। जिसके बाद भाजपा ने बीजेपी से आशा नैटियाल का टिकट काट दिया और शैलारानी रावत को प्रत्याशी बनाया।
शैलारानी रावत के बीजेपी में जाने के बाद कांग्रेस ने मनोज रावत को अपना प्रत्याशी बनाया। लेकिन अपना टिकट कटने से नाराज होकर आशा नैटियाल ने यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ा। आशा नौटियाल ने भारी मात्रा में बीजेपी के वोट काटे जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को हुआ और प्रचंड मोदी लहर में भी कांग्रेस के मनोज रावत जीत गए।
साल 2022 में बीजेपी ने एक बार फिर से शैलारानी रावत को टिकट दिया। जबकि कांग्रेस ने मनोज रावत पर ही दांव खेला। लेकिन इस बार निर्दलीय प्रत्याशी कुलदीप रावत भी मैदान में उतरे। शैलारानी रावत ने निर्दलीय प्रत्याशी कुलदीप रावत को मात देकर जीत दर्ज की।