भारतीय जनता पार्टी लगातार परिवारवाद पर प्रहार की बात करती है। हाल ही में पीएम मोदी ने भी राजनीति से परिवारवाद खत्म करने और नए युवाओं को मौका देने की बात कही है। लेकिन बात अगर उत्तराखंड की करें तो कुछ ही समय में केदारनाथ उपचुनाव होने वाला है। उत्तराखंड के ज्यादा उपचुनावों में भाजपा ने परिवारजनों पर ही दांव खेला है।
भाजपा का परिवारवाद पर प्रहार का दावा
भाजपा राजनीति से परिवारवाद को खत्म करने की बात अक्सर करती है। हाल ही में पीएम मोदी ने ‘परिवारवादी राजनीति’ को देश के लिए बड़ा खतरा बताया है। उन्होंने बीते रविवार को कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर परिवारवाद और तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप भी लगाया है।
परिवारवाद को लेकर अगर उत्तराखंड की बात करें तो यहां की राजनीति भी अछूती नहीं रही है। कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक परिवारवाद की राजनीति देखने को मिलती है। भाजपा में तो उपचुनावों में सबसे ज्यादा परिवारवाद देखने को मिलता है। ज्यादातर उपचुनावों में परिवार वालों को ही टिकट दिया गया है।
उत्तराखंड के उपचुनाव का इतिहास
उत्तराखंड के उपचुनावों के इतिहास पर एक नजर दौड़ाएं तो अब तक हुए ज्यादातर उपचुनावों में सत्ता पक्ष ने ही जीत हासिल की है। साल 2002 से साल 2007 तक कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान तीन उपचुनाव हुए। जिसमें से दो सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई थी तो एक सीट उक्रांद ने जीती थी। साल 2007 में भाजपा सत्ता में आई और 2007 से 2012 तक दो सीटों के लिए हुए उपचुनाव में बीजेपी ने ही जीत हासिल की।
साल 2012 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई और इस दौरान पांच सीटों पर उपचुनाव हुई। पांचों सीटों पर कांग्रेस की जीत हुई। साल 2017 से 2022 तक भाजपा के कार्यकाल में तीन सीटों पर उपचुनाव हुए जिसमें भाजपा की ही जीत हुई। साल 2022 में एक बार फिर भाजपा की सरकार आई। 2022 में एक सीट पर और साल 2023 में भी एक सीट पर उपचुनाव हुआ। जिसमें बीजेपी ही जीती।
उत्तराखंड में हर उपचुनाव में टिकट परिजनों ने कब्जाया
उत्तराखंड के उपचुनावों की बात करें तो साल 2017 से लेकर अब तक जितने भी उपचुनाव हुए हैं उनमें से ज्यादातर में भाजपा ने परिजनों को ही टिकट देकर मैदान में उतारा है। बात करें साल 2017 के उपचुनाव की तो बीजेपी विधायक मगनलाल शाह के निधन के बाद उनकी पत्नी मुन्नी देवी को टिकट दिया गया और उन्होंने जीत भी हासिल की।
साल 2019 में पिथौरागढ़ उपचुनाव में बीजेपी विधायक प्रकाश पंत के निधन के बाद उनकी पत्नी चंद्रा पंत को टिकट दिया गया। इस चुनाव में भी बीजेपी की ही जीत हुई। 2021 का सल्ट उपचुनाव में भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के बाद उनके भाई महेश जीना को टिकट दिया गया और इस सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की। साल 2023 में बागेश्वर उपचुनाव में बीजेपी विधायक चंदन राम दास के निधन के बाद उनकी पत्नी पार्वती दास को टिकट दिया गया। एक बार फिर ये सीट बीजेपी के खाते में आ गई।
केदारनाथ में किसकी झोली में जाएगी टिकट
कुछ ही समय में केदारनाथ उपचुनाव होने जा रहा है। जिसके लिए अब तक कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। बीजेपी की दिवंगत विधायक शैलारानी रावत की बेटी एश्वर्या रावत ने टिकट के लिए दावेदारी की है। एश्वर्या रावत ने यही बात कही है कि हर उपचुनाव में परिजनों को ही टिकट दिया जाता है इसलिए उनका इस टिकट पर हक है। जिसके बाद कई सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि अगर एश्वर्या रावत को टिकट दिया जाता है तो बीजेपी के परिवारवाद पर प्रहार की बात झूठी हो जाएगी। ऐसे में अब देखना ये होगा कि बीजेपी किसको अपना टिकट देगी।