देहरादून (आशीष तिवारी): कांग्रेस चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष पूर्व सीएम हरीश रावत के ट्वीट के बाद उत्तराखंड में कड़ाके की ठंड के बावजूद सियासी पारा हाई रहा। सियासी पारे की वजह क्या थी? हरदा को क्यों ऐसा करना पड़ा और इसका असर कांग्रेस पर कितना पड़ेगा? क्या हाईकमान कोई बड़ा फैसला लेगा? इन सब सवालों के जवाब आपको हम अपनी इस एक्सक्लूसिव स्टोरी में बताने जा रहे हैं।
प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को भी बदला जा सकता है
सूत्रों की मानें तो पूर्व सीएम हरीश के इस कदम के बाद प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को भी बदला जा सकता है। हरदा पीसीसी और स्थानीय नेताओं की उपेक्षा से नाराज हैं। राहुल गांधी की रैली में स्थानीय नेताओं की उपेक्षा की गई थी। शिकायत हरीश रावत तक पहुंची। यहां तक कि कई बड़े स्थानीय कांग्रेस नेताओं को राहुल गांधी की रैली में वीआईपी गैलरी का पास तक नहीं मिला।
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से नाराज
हरीश रावत उन कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से नाराज बताए जा रहे हैं, जिन्होंने राहुल की रैली को सफल बनाने के लिए दिन-रात एक कर दिए, लेकिन उनकी उपेक्षा की गई। संगठन के प्रति नाराज़गी और खुद की उपेक्षा से आहत हरदा के ट्वीट के संदेश ने उत्तराखण्ड की सियासत को एक नया ही मोड़ दे दिया। इस परे सियासी बवंडर के बाद जो सूत्र बता रहे हैं। वो यह है कि कांग्रेस इस ड्रैमेज कंट्रोल को मैनेज करने के लिए प्रदेश प्रभारी को बदल सकती है। इस पूरे घटनाक्रम में जो बात सामने आ रही है। उसकी पूरा सियासी लाभ पूर्व सीएम हरीश रावत को होता नजर आ रहा है।
कांग्रेस को अंदर तक झकझोर दिया
प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव पर इशारों ही इशारों में निशाना साधने वाले हरदा के सियासी वार ने कांग्रेस को अंदर तक झकझोर दिया है। यूं कहें कि कांग्रेस को पूरी तरह हिलाकर रख दिया। हरीश रावत के सियासी बयानों से सामने आए आक्रोश और तल्ख तेवरों की कहानी कोई एक दिन की नहीं है। यह कहानी राहुल गांधी की रैली से लेकर दो दिन पहले तक हुए घटनाक्रम के बाद सामने आई। हरदा कांग्रेस और राज्य की सियासत में क्या ताकत रखते हैं, उनके एक ट्वीट ने साबित कर दिया है। कांग्रेस तो डगमगाई ही। साथ ही भाजपा और आम आदमी पार्टी भी उनके बयान को भुनाने में जुट गए। भाजपा जानती है कि उनकी राह में अगर कोई रोड़ा है, तो वह पूर्व सीएम हरीश रावत ही हैं।
क्या कांग्रेस होगा नुकसान
जिस वक्त मे कांग्रेस को चुनावी रणनीतियों और मुद्दों पर काम करना था, उस वक्त पार्टी अंदरूनी कलह से घिरी है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में कलह का ये पहला मामला है, लेकिन चुनाव से ऐन मौके पर पार्टी इससे जरूर नुकसान हो सकता है। हालांकि, जिस तरह से हरदा हारी बाजी पलटने की क्षमता रखते है, उससे वो फिर से कांग्रेस को इस डैमेज से बचा सकने की ताकत भी रखते हैं।
पत्रकारों के पास
राहुल गांधी की रैली से जुड़ी एक बात और सामने आई है कि रैली को कवर करने के लिए पत्रकारों से उनके पहचान पत्र और आधार कार्ड तक मांग गए थे। सवाल यह है कि राहुल गांधी को एसपीजी की सुरक्षा भी नहीं दी गई है। दूसरी बात यह है कि राहुल गांधी को पत्रकारों से भी वार्ता नहीं करनी थी, फिर किसके कहने पर पत्रकारों से उनके आधार कार्ड और अन्य जानकारियां मांगी गई। सूत्रों की मानें तो यह भी प्रदेश प्रभारी और एक बड़े नेता के कहने पर किया गया था।
रैली में यह बात भी चुभी
राहुल गांधी की रैली में एक बात और सामने आई कि रैली स्थल पर स्थानीय नेताओं को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया था। वहां, राहुल गांधी, इंदिरा गांधी और शहीद सीडीएस जनरल बिपिन रावत के कटआउट लगाए गए थे। लेकिन, हरीश रावत के पोस्टर और बैनरों को हटाए जाने की बात भी सामने आईं। यही उनकी नाराजगी की बड़ी वजह मानी जा रही है।