पहाड़ों वाली दिवाली की रौनक ही कुछ और होती है। पहाड़ों दिवाली की सुबह से ही लोग घरों के कामों जुट गए हैं। उठकर स्नान करने के बाद कुछ लोग देहरी और मंदिर की लिपाई कर रहे हैं तो कुछ लोग बिस्वार पीस रहे हैं। जबकि कुछ अपने खेतों से तोड़ कर लाए गए फूलों से मालाएं बना रहे हैं।
पहाड़ों वाली दिवाली की रौनक ही होती है कुछ और
दिवाली के त्यौहार की तैयारियां लोग कई दिन पहले से ही शुरू कर देते हैं। घरों में कई दिनों पहले से ही लोग लाइटें लगा देते हैं। लेकिन पहाड़ों पर दिवाली वाले दिन सुबह-सुबह फूल मालाएं बनाना, देहरी लीपना और ऐपण बनाना जैसे कई काम किए जाते हैं। दिवाली की रौनक देखते ही बन रही है। दिवाली के त्यौहार पर सुबह से ही पहाड़ों पर लोग हाजरी के फूल की मालाएं बना रहे हैं।
ऐपण से घर को सजा रही हैं महिलाएं
यूं तो आजकल ज्यादातर लोग घरों में ऐपण पेंट से बनाने लगे हैं। लेकिन गांवों आज भी पुराने पहाड़ी घरों में ऐपण शुभ कार्य वाले दिन या इस से एक दिन पहले ही बनाए जाते हैं। आज दिवाली के दिन तड़के से ही महिलाएं घरों को मिट्टी और गेरू से लीप रही हैं। तो कुछ बिस्वार पीस कर ऐपण बनाकर अपने घरों को सजा रही हैं। ओखली से लेकर देहरी और मंदिर सभी स्थानों पर महिलाएं ऐपण बना रही हैं।
गन्ने की लक्ष्मी बना रहे लोग
उत्तराखंड के कुमाऊं में दिवाली के दिन गन्ने से माता लक्ष्मी बनाई जाती हैं। गन्ने से बनाई जाने वाली इस मूर्ति का विशेष महत्व होता है। आज दिवाली की सुबह लोग खेतों से गन्ने काट कर ला रहे हैं और मां लक्ष्मी की मूर्ति बना रहे हैं।
मां की मूर्ति को लाल, गुलाबी लंहगा और पिछौड़ी पहनाकर गहनों से सजाया जा रहा है। रात को लक्ष्मी पूजन के समय इसी मूर्ति की पूजा कुमाऊं मंडल में की जाती है। बता दें कि दीवाली के दिन गन्ने की लक्ष्मी की पूजा के बाद अगले दिन गोवर्धन पूजा व भैया दूज तक लोग दूसरे के घरों में मां लक्ष्मी को देखने के लिए जाते हैं। तीन दिन बाद माता लक्ष्मी को भावभीनी विदाई दी जाती है।