दक्षेश्वर महादेव मंदिर: शिव और सती की कहानी तो आप सब ने सुनी होगी और माता सती के पिता राजा दक्ष को भी आप अच्छी तरह पहचानते होंगे पर क्या आप ये जानते हैं कि राजा दक्ष ही अपनी पुत्री कि मौत के जिम्मेदार बने। आखिर उस दिन दक्ष महादेव मंदिर के प्रांगण में माता सती के साथ ऐसा क्या हुआ की उन्होंने खुद ही अपने आप को मृत्यु के हवाले कर दिया? इसी मंदिर में महादेव से हमेशा के लिए सती छिन गई थी। हरिद्वार में बसे इस मंदिर के बारे में आइए विस्तार से जानते है।
हरिद्वार के कनखल में बसा है दक्षेश्वर महादेव मंदिर
दक्षेश्वर महादेव मंदिर हरिद्वार के कनखल में बसा हुआ है। ये वही जगह है जहां शिव से सती हमेशा के लिए छिन गई थी।दक्षेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण रानी दनकौर ने करवाया था। इसका पुनः निर्माण सन 1962 में करवाया गया था।
कहा जाता है यहां राजा दक्ष के आग्रह पर शिव ने यहां हर साल सावन में आने का वचन दिया था। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति यहां आकर दक्षेश्वर महादेव के नाम से गंगाजल चढ़ाकर पूजा-अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
क्या हुआ था दक्षेश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में?
पौराणिक मान्यता के अनुसार दक्ष प्रजापति की कई बेटियां थी पर वो माता शक्ति को बेटी रुप में पाना चाहते थे । इसी इच्छा के सांथ उन्होंने आदी शक्ति की कठोर तपस्या कि दक्ष प्रजापति के घोर तप से खुश होकर माँ आदि शक्ति ने उन्हें दर्शन दिए और खुद उनकी पुत्री के रुप में जन्म लेने का वरदान भी दिया।
कुछ समय बाद माता आदी शक्ति ने प्रजापति दक्ष के घर सती रुप में जन्म लिया जब सती बड़ी हुई तो प्रजापति दक्ष सती के लिए योग्य वर खोजने लगे तब ब्रह्मा जी ने उन्हें परामर्श दिया कि सती के लिए पूरे संसार में सिर्फ एक ही योग्य वर है जो है शिव। अपने पिता कि आज्ञा मानते हुए दक्ष प्रजापति ने अपनी बेटी सती का विवाह महादेव शिव से करा दिया।
क्यों महादेव से रुष्ट हुए दक्ष
कहा जाता है एक बार स्वर्ग में देव सभा आयोजित की गई जिसमें महादेव के साथ सभी देवताओं ने शिरकत की थी। देव सभा में सबसे अंत में दक्ष प्रजापति आए उनके आते ही सारे देवता उनके सम्मान में हाथ जोड़कर खड़े हुए पर शिव जिन्हें औपचारिकता का कोई मोह नहीं था वो बैठे रहे। जैसे ही दक्ष ने शिव को बैठे हुए देखा तो उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और क्रोद्ध वश वो महादेव को अपमानित करने का अवसर देखने लगे।
प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ में महादेव को नहीं भेजा निमंत्रण
एक बार प्रजापति दक्ष ने एक महायज्ञ आयोजित कराया। जिसमें उन्होंने महादेव को छोड़कर सभी देवी देवताओं को निमंत्रित किया जब माता सती को ये बात पता चली की उनके पिता के घर महायज्ञ हो रहा है, तो वो शिव से वहां जाने कि अनुमति मांगने लगी। शिव ने कहा कि बिना बुलाए किसी के घर जाना ठीक नहीं है। लेकिन सती पिता के घर जाने कि जिद करने लगी जिसके बाद शिव ने सती को दक्ष प्रजापती के घर जाने कि इजाजत दे दी और खुद समाधि में लीन हो गए।
प्रजापति दक्ष ने किया शिव को अपमान
अपने पिता के घर पहुंचते ही सती ने देखा कि वहां उनकी सारी बहनें मौजूद हैं। लेकिन किसी भी बहन ने उनसे ठीक से बात तक नहीं की सिर्फ उनकी मां ही थी जिन्होंने सती का स्वागत किया। दुखी मन से सती यज्ञ वेदि के पास गई और उन्होंने देखा वहां सारे देवताओं के भाग रखे हुए थे सिर्फ शिव का भाग ही नहीं रखा हुआ था।
जिसे देखकर सती ने अपने पुत्री होने के हक से दक्ष से पुछा कि पिताजी इस यज्ञ में कैलाशपति का भाग क्यों नहीं रखा है? जबकि यहां सारे देवताओं के भाग रखे हुए हैं। ये सुनते ही अपने अहंकार के मद में चूर दक्ष बोला- ‘यहां उसका भाग क्यों होगा ये यज्ञ देवताओं के लिए है वो नग्न रहने वाला शिव दरिद्रों और भूतों का स्वामी है वो देवताओं के बीच में बैठने के काबिल नहीं हैं।
यज्ञकुंड में कूदी माता सती
शिव का इतना अपमान सुनने के बाद सती क्रोद्ध से कांपने लगी और बोली कि मंगल कर्ता शिव के बारे में आपने ऐसी बातें बोलकर बहुत बड़ा पाप किया है। आप उनका अपमान कर रहे हो जो पूरी सृष्टि का विनाश करने कि ताकत रखता है। पति का इतना अपमान सुनकर माता सती यज्ञकुंड में कूद गई।
कैसे जन्मा वीरभद्र?
जैसे ही शिव को इस बात का पता चला तो वो अत्यंत क्रोधित हो गए और क्रोध में तांडव करने लगे उन्होंने तांडव करते हुए अपनी जटाएं शिला में जोर से मारी जिससे वीरभद्र की उत्पत्ति हुई। वीरभद्र ने जाकर दक्ष का गला काट दिया और सारे यज्ञ का विध्वंश कर दिया। सभी देवताओं के अनुरोध पर महादेव ने राजा दक्ष को बकरे का सिर लगाकर दोबारा जीवित कर दिया। राजा दक्ष ने जीवित होते ही महादेव से अपनी गलतीयों की माफी मांगी।
सती के शरीर के 108 टुकड़े किए गए
शिव ने उन्हें माफ तो कर दिया पर शिव के रुदन से पृथ्वी ठहर गई जिसे देखकर भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के 108 टुकड़े कर दिए और ये अंग एक-एक करके धरती पर गिरने लगे। कहा जाता है जहां-जहां ये टुकड़े गिरे वहां-वहां एक शक्तिपीठ की स्थापना होती गई अभी तक संसार में 51 शक्तिपीठ ही मिल पाए हैं जो पूजे जाते हैं।
क्या रहस्य छिपा है इस दक्षेश्वर महादेव मंदिर में?
वो जगह जहां ये सारा घटनाक्रम हुआ आज दक्षेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में बना एक छोटा गड्ढा आज भी माता सती की चीखें अपने अंदर समाए हुए है। माना जाता है की सती इसी अग्नि कुंड़ में कूदी थी।
इस मंदिर में बने एक निशान के बारे में कहा जाता है कि ये भगवान विष्णु के पांव के निशान हैं, जिन्हें देखने के लिए मंदिर में हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इस दक्षेश्वर महादेव मंदिर के पास गंगा किनारे दक्ष घाट है। कहा जाता है सावन में यहां शिवभक्त गंगा में स्नान कर महादेव के दर्शन करते हैं।