उत्तराखंड के 12वें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जिन्हें धाकड़ धामी के नाम से भी जाना जाता है मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही हमेशा चर्चाओं में रहे हैं। सीएम पुष्कर सिंह धामी के बड़े और ऐतिहासिक फैसलों के कारण उन्हें उत्तराखंड की जनता का उन्हें भरपूर प्यार मिल रहा है।
मुश्किल वक्त में मिली थी सीएम धामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी
कभी उत्तराखंड के दिग्गज नेता और नामी नेताओं की लिस्ट में भी ना आने वाले पुष्कर सिंह धामी अचानक से उत्तराखंड के सीएम बने। भारतीय जनता पार्टी के एक कार्यकर्ता से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने की सीएम पुष्कर सिंह धामी का सफर उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। युवा मुख्यमंत्री को लोगों को इतना प्यार मिला की दूसरी बार उनके नेतृत्व में भाजपा ने उत्तराखंड में अपनी सरकार बनाई। इतना ही नहीं उनके फैसलों ने ऐसी मिसाल पेश कर दी है कि अब प्रदेश ही नहीं देश में उनके फैसलों की तारीफ हो रही है।
पिथौरागढ़ में हुआ था सीएम धामी का जन्म
सीएम पुष्कर सिंह धामी का जन्म पिथौरागढ़ जिले के तुंडी गांव में 16 सितंबर 1975 को हुआ था। उन्होंने पांचवी तक यहीं से पढ़ाई की। जिसके बाद उनका परिवार खटीमा के नागला तराई भाबर के क्षेत्र में बस गया। उनके पिता शेर सिंह धामी भारतीय सेना में सूबेदार थ जबकि उनकी माता विशना देवी एक गृहणी हैं। साल 2012 में पुष्कर सिंह धामी ने शादी की। उनकी पत्नी का नाम गीता धामी है। उनके दो बच्चे भी हैं।
सीएम धामी का राजनीतिक सफर नहीं था आसान
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का राजनीतिक सफर साल 1990 से शुरू हुआ जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ जुड़े। भारतीय जनता पार्टी की स्टूडेंट विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में उन्होंने कई अहम जिम्मेदारियों को संभाला। उत्तराखंड की राजनीति में उनकी एंट्री साल 2001 में हुई। जब भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तो पुष्कर सिंह धामी उनके ओएसडी थे।
साल 2002 तक उन्होंने राज्य की भौगोलिक परिस्थियों, समस्याओं को नजदीक से समझा और बखूबी एक अनुभवी सलाहकार के रूप में काम किया। साल 2002 से लेकर साल 2008 तक पुष्कर सिंह धामी भाजपा के उत्तराखंड युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे।उत्तराखंड की राजनीति में सीएम धामी ने सक्रिय रूप से साल 2012 में कदम रखा। साल 2012 में उन्होंने ऊधमसिंह नगर की खटीमा सीट से चुनाव लड़ा और जीते भी। जिसके बाद उन्होंने दोबारा यहीं से जीत हासिल की।
अपनी सीट हारने के बाद भी बनाए गए मुख्यमंत्री
साल 2021 पुष्कर सिंह धामी के राजनीतिक सफर का अब तक का सबसे अच्छा साल रहा। जब किन्हीं कारणों से भाजपा ने तीरथ सिंह रावत को सीएम पद से हटाया तो पुष्कर सिंह धामी को इस पद पर बैठाया गया और मुश्किल समय में उत्तराखंड की कमान धामी को सौंपी गई। साल 2021 से पहले उत्तराखंड की राजनीति में बड़े नेताओं की लिस्ट में पुष्कर सिंह धामी का नाम शामिल होना तो दूर शायद खटीमा के बाहर उन्हें कम ही लोग जानते थे।
लेकिन अचानक से उन्हें सीएम बनाया गया। मुश्किल वक्त में उन्हें सीएम बनाया गया और वो सभी की उम्मीदों पर खरे भी उतरे। अपने फैसलों से उन्होंने जनता हो या पार्टी के बड़े नेता सभी का दिल जीत लिया। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2022 में विधानसभा चुनाव में पुष्कर सिंह धामी अपनी विधानसभा खटीमा से चुनाव हार गए। लेकिन फिर भी उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। जिसके बाद उन्होंने चंपावत से उपचुनाव लड़ा जिसमें उनकी बंपर जीत हुई।
धाकड़ फैसलों की देशभर में हो रही चर्चा
सीएम धामी के कुछ फैसले ऐसे हैं जिनकी ना केवल उत्तराखंड की जनता फैन हो गई है बल्कि देशभर में इसकी चर्चाएं हो रही हैं। प्रदेश में देश का सबसे कठोर नकल विरोधी कानून लागू करने से लेकर यूसीसी तक उनकी फैसलों की तारीफ देशभर में हो रही है। महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण लागू किए जाने, उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए एक सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून लागू करने, दंगारोधी कानून जैसे फैसलों से जनता बेहद ही खुश नजर आ रही है। इसके साथ ही त्तराखंड नई शिक्षा नीति को सबसे पहले लागू करने वाला राज्य बन गया है प्रदेश में नारी सशक्तिकरण के लिए किए जा रहे प्रयासों से महिलाएं खुश हैं और अपने पैरों पर खड़ी होकर आत्मनिर्भर बन रही हैं।
सीएम धामी के आगे चुनौतियां भी हैं अपार
फिलहाल सीएम धामी के साथ जहां कई अच्छाईयां हैं तो वहीं उनके लिए चुनौतियां भी कम नहीं हैं। बेरोजगारी और पलायन जैसे मसलों पर उन्हे काम करना होगा वरना उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। बेरोजगार युवा लगातार सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। जिस से युवाओं की नाराजगी देखने के लिए मिल रही है। सबसे बड़ी चुनौती सीएम धामी के सामने यही है। डेमोग्राफिक चेंज को रोकना और स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा करना भी बहुत बड़ी चुनौती है।
जहां एक ओर पहाड़ में खेती को सुअर और बंदर बर्बाद कर रहे हैं तो इनसे खेती को बचाने के लिए काम करना होगा। इसके साथ ही पहाड़ की स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारना भी बहुत बड़ी चुनौती है। आपदा और उत्तराखंड का नाता पुराना है ये कहना गलत नहीं होगा। क्योंकि हर साल करोड़ों का नुकसान आपदा के कारण होता है और कई लोगों को अपनी जान भी इस कारण गंवानी पड़ती है। सीएम धामी को आपदाओं के निपटने के लिए बेहतर रणनीति पर काम करना होगा।