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आशीष तिवारी। तो क्या माना जाए कि उत्तराखंड में कांग्रेस के नए अगुवा करन माहरा ने अपनी पहली ही चुनौती में ऐसे जीतेंगे? ये सवाल जाएज और सियासी गलियारों में उछला हुआ भी है।
दरअसल राज्य में छह महीनों के भीतर ही एक बार फिर से चुनाव का बिगुल बजा हुआ है। हालांकि पिछले चुनाव और इस चुनाव के बीच में कांग्रेस के लिए हालात काफी कुछ बदल चुके हैं।
पिछले यानी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस जिस संगठन स्तर पर चल रही थी अब वो सांगठनिक ढांचा काफी हद तक बदल चुका है। प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष बदल चुके हैं। उनकी टीम बदल चुकी है।
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हालांकि दावा तो यही है कि कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने के बाद संगठन एक नई उर्जा से लबरेज है। एक बार फिर से कांग्रेस अपने विरोधियों के खिलाफ मजबूती से मैदान में उतरेगी।
ऐसा लग रहा था मानों विधानसभा चुनावों के बाद जिस तरह से कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बदला गया उसके बाद उपचुनावों में कांग्रेस कुछ बड़ा करेगी। लेकिन फिलहाल तक ये ‘लग’ ही रहा है और ‘लगने’ से आगे नहीं बढ़ा जा सका है।
चंपावत में उपचुनाव होने को हैं और सीएम पुष्कर सिंह धामी एक बार फिर से चुनावी मैदान में हैं। माना जा रहा था कि इन उपचुनावों में कांग्रेस पूरी मजबूती और कुनबे की ताकत के साथ लड़ेगी। फिलहाल कांग्रेस के हावभाव से ऐसा नहीं लग रहा है। ऐसा लग रहा है मानों सिर्फ करन माहरा ही हाथ पांव मार रहें हों और संगठन का बड़ा धड़ा उनसे निश्चित दूरी पर खड़े होकर तालियां बजा रहा हो।
कांग्रेस के पास अपनी सियासी रणनीति का अहम हिस्सा भी नहीं बचा है। जहां एक ओर बीजेपी ने चंपावत उपचुनाव के लिए बाकायदा प्रभारी तक की तैनाती के साथ नेताओं की पूरी टीम उतार दी है तो वहीं कांग्रेस की रणनीति देहरादून के प्रदेश मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस से आगे नहीं बढ़ पा रही है। कांग्रेस ने अपने बड़े नेताओं को अब भी मैदान में नहीं उतारा है।
कांग्रेस के हावभाव से जाहिर है कि वो फिलहाल उपचुनावों के लिए बीजेपी को कोई गंभीर चुनौती देने की लालसा में नहीं है। हां, दावों में जरूर दिख रहा है कि कांग्रेस मजबूती से चुनाव लड़ रही है लेकिन धरातल पर ऐसा होता दिखना दुर्लभ है।