चमोली के ऋषिगंगा और धौलीगंगा में मची तबाही में अब तक 32 लोगों के शव बरामद किए जा चुके हैं जिनमे एक कांस्टेबल और एक एएसआई शामिल हैं। वहीं इस जल प्रलय से अलकनंदा नदी में भी हालात खराब कर दिए नतीजा पानी के तेज बहाव के साथ मलबा आने से कई प्रजातियों की लाखों मछलियां मर गई हैं। नदी किनारे मरी हुई मछलियों का ढेर लगा हुआ है। लोगों मछलियों को लूटने के लिए नदी में उतर आए हैं। वहीं वन्य जीव वैज्ञानिकों ने भी इस पर चिंता जताई है। वैज्ञानिकों ने कहा कि नदी के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को अपने मूल स्वरूप में आने में लगभग दो साल लग सकते हैं।
आपको बता दें कि रविरा को आई जल प्रलय में मिट्टी व पानी का सैलाब धौलीगंगा से होते हुए तेज धार से अलकनंदा नदी में पहुंचा। जिसके बाद पानी का तापमान बढ़ गया और पानी में मलबा आ गया। मलबे के कारण स्नो ट्राउट, महाशीर, पत्थरचट्टा, गारा समेत कई मत्स्य प्रजातियों की लाखों मछलियों मर गई हैं। मछलियों का दम घुट गया वहीं विष्णुप्रयाग, पीपलकोटी, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग व रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी किनारे मरी मछलियों का ढेर लग गया।
भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून की शोधार्थी भावना धवन का कहना है कि अलकनंदा का पानी ठंडा व साफ है, जिस कारण यहां स्नो ट्राउट व महाशीर की संख्या सबसे अधिक हैं, लेकिन जैसे ही नदी में अधिक वेग से मलबा और पानी पहुंचा जिससे मछिलयों का दम घुट गया औऱ वो मर गईं।जानकारी मिली है कि इस प्रलय से अलकनंदा नदी में 20 से अधिक मत्स्य प्रजातियां प्रभावित हुई हैं। साथ ही नदी का जलीय पारिस्थितिकी तंत्र भी बिगड़ गया है, जिसे अपने मूल रूप में आने में लगभग दो साल का समय लग सकता है।