SC says that the contentions of centre, regarding the issue of physiological limitations & social norms to deny an opportunity to women officers is disturbing & can’t be accepted.
Also says – Centre, by not giving permanent commission to women officers, had prejudiced the case. https://t.co/XvaHS4MNKy
— ANI (@ANI) February 17, 2020
आज महिलाएं हर क्षेत्र में बढ़चढ़ कर भाग ले रही हैं और आगे बढ़ रही हैं। बेटियां भी वर्दी पहनकर देश की राज्य की सेवा कर रही हैं। बात करें सेना की तो सेना की वर्दी भी महिलाएं धारण किए हैं और देश की रक्षा कररही हैं लेकिन कहीं न कहीं महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता रहा है। जी हां ये हम ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि पुरुषों की तरह महिलाओं को समान कमीशन दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने पुरुषों की तरह महिलाओं को सेना में ‘कमांड पोस्ट’ देने पर अहम फ़ैसला सुनाया है. सोमवार को अदालत ने दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरक़रार रखते हुए कहा है कि महिलाएं भी पुरुषों की तरह सेना में कमांड पोस्ट संभाल सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेना की सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन मिले, चाहे वो कितने भी समय से कार्यरत हों. अदालत ने इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के साल 2010 के फ़ैसले को बरक़रार रखा है. आपको बता दें कि कमांड पोस्ट से मतलब है कि किसी सैन्य टुकड़ी की कमान संभालना यानी उस टुकड़ी का नेतृत्व करना.
इस मामले पर अपना फ़ैसला देते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी ने कहा कि समाजिक धारणाओं के आधार पर महिलाओं को समान मौक़े न मिलना परेशान करने वाला और अस्वीकार्य है. महिला सैन्य अधिकारियों को परमानेंट कमीशन न देना सरकार के पूर्वाग्रह को दिखाता है. कहा कि केंद्र सरकार को महिलाओं के बारे में मानसिकता बदलनी होगी और सेना में समानता लानी होगी। महिलाओं का कमांड पोस्ट पर प्रतिबंध अतार्किक है और समानता के ख़िलाफ़ है. फ़ैसला सुनाते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘समानता का अधिकार एक तार्किक अधिकार है.