यूपीआई भुगतान करने में गांवों ने शहरों को पीछे कर दिया है। लोगों ने एटीएम का प्रयोग करना काफी कम कर दिया है । यही कारण भी है कि 2000 के नोट वापस लेने का असर नहीं दिखा है।
668 फीसदी से 767 फीसदी पहुंचा डिजिटल भुगतान
जानकारी के अनुसार एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015-16 में जीडीपी की तुलना में डिजिटल भुगतान 668 फीसदी था, जो अब 767 फीसदी पहुंच गया है। आरटीजीएस को छोड़ दें तो खुदरा डिजिटल भुगतान 129 फीसदी से बढ़कर 242 फीसदी पर पहुंच गया है। उधर, 2022-23 में मूल्य के लिहाज से यूपीआई भुगतान में गांवों का हिस्सा बढ़कर 25 फीसदी पहुंच गया, जबकि शहरों की हिस्सेदारी 20 फीसदी रही।
एटीएम से निकासी घटकर 17 फीसदी
वहीं खुदरा में यूपीआई का मूल्य बढ़कर 83 फीसदी हो गया है। एटीएम से निकासी घटकर 17 फीसदी हो गई है। एटीएम से कुल लेनदेन 30-35 लाख करोड़ रुपये रहा है। 2017 में एटीएम से लेनदेन नॉमिनल जीडीपी का 15.4 फीसदी था, जो अब 12.1% पर आ गया है। वहीं एसबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आरबीआई के 2000 के नोट वापस लेने के फैसले का अर्थव्यवस्था पर कोई असर नहीं होगा।
एटीएम भी कम जा रहे लोग
रिपोर्ट में कहा गया है कि पैसे निकालने के लिए पहले लोग साल में औसतन 16 बार एटीएम में जाते थे। अब यह संख्या घटकर 8 बार रह गई है। लगातार डिजिटल भुगतान की वजह से अब एटीएम से नकदी निकासी में गिरावट आई है। इस समय देश में 2.5 लाख एटीएम हैं।
अप्रैल में 14.1 लाख करोड़ रुपये का भुगतान
रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल में यूपीआई से कुल 8.9 अरब लेनदेन के जरिये 14.1 लाख करोड़ रुपये का भुगतान हुआ। इस दौरान हर भुगतान का मूल्य औसतन 1,600 रुपये रहा। देश के शीर्ष-15 राज्यों में यूपीआई की मूल्य और संख्या के लिहाज से हिस्सेदारी 90 फीसदी रही है। शीर्ष-100 जिलों में यह हिस्सा 45 फीसदी है। यूपीआई में एक रुपये का मूल्य बढ़ने से डेबिट कार्ड से लेनदेन में 18 पैसे की कमी आती है। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक की मूल्य के लिहाज से यूपीआई भुगतान में 8-12 फीसदी हिस्सेदारी है।यूपी, राजस्थान, बिहार, तमिलनाडु, प. बंगाल में यह 5-8 फीसदी है।