बसंत निगम। पिछले तीन दिनों से जो उत्तराखंड में चल रहा है उसका लब्बो लुबाब तो यही है । उत्तराखंड विधान सभा का बजट सत्र चल रहा था, विभागवार बजट पर चर्चा होनी थी, अचानक दिल्ली से काल आती है कि इमरजेंसी कोर ग्रुप की बैठक है, आलम ये कि आनन फानन वित्त विधेयक पारित करा कर विधान सभा का सत्र तय समय से 5 दिन पहले ही खत्म कर दिया जाता है। मुख्यमंत्री से लेकर तमाम मंत्री और विधायकों को देहरादून लाने के लिए हेलीकाप्टर रूपी विक्रम सवारी गाड़ी तैनात कर दी जाती है, कोई सांसद दिल्ली के रास्ते से वापस बुला लिया जाता है तो केंद्रीय मंत्री निशंक को अर्जेंट कॉल पर लखनऊ से देहरादून दौड़ना पड़ता है, इसी भागम-भाग के बीच कोर कमेटी की हाई लेवल मीटिंग भी शुरू हो जाती है और शुरू हो जाता है समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पर प्रदेश में पैनिक क्रीएट करने की हेडलाइन्स, मसलन ‘प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन’, ‘त्रिवेंद्र रावत की छुट्टी वगैरह वग़ैरह’।
जिस हाई एजेंडा मीटिंग को लेकर राज्य का विधान सभा सत्र को बीच में स्थगित कराया गया, अफरा तफरी का माहौल बनाया गया वो बैठक महज 35 मिनट में खत्म भी हो जाती है, विधायकों से बात छिपती नहीं, सांसदों से हुई नहीं तो क्या केंद्रीय दल महज चाय पीकर चर्चा के लिए आता है और उत्तराखंड में अफरा तफरी मचाकर चला जाता है ।
सवाल यहां ये भी उठता है कि क्या केंद्रीय दल महज खाना पूर्ति करने आया था या वास्तव में सरकार की नब्ज टटोलने आया था, नब्ज़ टटोलने आया था अगर दल तो सिर्फ 35 मिनट में ही सारा प्रदेश हिलाकर क्यों वापस निकल गया केंद्रीय दल ।
अब ताज़ा सियासी नाटक आज सुबह से शुरू हुआ है जिसका भी सूत्रधार वही नेशनल मीडिया है जिसको त्रिवेंद्र सरकार के सलाहकार स्थानीय मीडिया के आगे बहुत महान मानते हैं, आज सुबह से सबसे तेज चैनल पर उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदलेगा, सूत्रों के हवाले से खबर बताकर एक जबरदस्त पैनिक क्रिएट किया जा रहा। कुछ चैनल तो पल पल की रिपोर्ट दिखा रहे हैं, कुछ ने मुख्यमंत्री प्रत्याशियों के पैनल भी बना दिया है, कुछ तो बाकायदा दो नाम लेकर सामने आ गए हैं, वो भी तब जब न तो मोदी न ही अमित शाह ने त्रिवेंद्र रावत को दिल्ली तलब किया हो या कुछ कहा हो ।
संभवतः ये मोदी शासनकाल में पहला राज्य उत्तराखंड होगा जहां इस तरह की अफरा तफरी का माहौल बना है, बात कुछ नहीं है ये नहीं कहा जा सकता क्योंकि आनन फानन विधानसभा सत्र स्थगित करना जरूर कुछ इशारा करता है और बात इतनी ही बड़ी थी तो महज 35 मिनट की बैठक खुद में हास्यस्पद लगती है ।
खैर सरकार आपकी है, पार्टी आपकी है, सीएम आपके हैं जो चाहिए वो कीजिये मगर इस तरह के पैनिक सिचुएशन से तो बस अफरा तफरी ही मचेगी और वर्तमान मुख्यमंत्री का मनोबल तो गिरेगा ही आगे भी वो एक बेबस मुख्यमंत्री की तरह ही काम कर पायेगा, तो क्यों भाजपा अपने ही मुख्यमंत्री को बेबसी के इस द्वार पर धकेलने के लिये आमादा है, कहां गया अमित शाह और मोदी का कठोर अनुशासन जो किसी भी विद्रोह को पनपने ही नही देता है, कहां हैं वो नेता जो पार्टी और सरकार में सामंजस्य नही बैठा पाए, चाहे वो बंशीधर भगत हों या महामंत्री संगठन अजेय कुमार, इस अफरा तफरी की जिम्मेदारी संगठन लेने से बच नहीं सकता या सिर्फ त्रिवेंद्र से नाराजगी है विधायकों की ये कह कर नहीं बच सकता। मुख्यमंत्री बदल कर अथवा इन्ही मुख्यमंत्री को आगे रख कर सरकार चलाने में भी अब मुख्यमंत्री डर डर कर काम करेंगे और डर में कभी कोई बोल्ड निर्णय नही होता।
प्रदेश में उत्पन्न इस पैनिक सिचुएशन से जितनी जल्दी भाजपा प्रदेश को बाहर निकाले उतना ही प्रदेश के लिए अच्छा होगा हालांकि ये पैनिक फैलाना भी आपको शोभा नही देता क्यों आप पार्टी विद डिफरेंस हैं।