उत्तराखंड में बादल फटने के मामले आए दिन सामने आ रहे हैं। पहले देहरादून के मालदेवता, फिर संतला देवी मंदिर के पास बादल फटा। वहीं आज पिथौरागढ़ में बादल फटने से तबाही मची। इससे पहले टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली में भी बादल फटने की घटनाएं हुई थी जिसमे भारी नुकसान हुआ था। बादल फटने से अब तक कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। आज पिथौरागढ़ में बदल फटने से अब तक 4 लोगों की मौत हो चुकी है।
जानिए क्या होता है बादल फटना?
बादल फटना बारिश होने का बड़ा स्वरुप है। इसे मेघविस्फोट या मूसलाधार वर्षा भी कहते हैं। मौसम विज्ञान के अनुसार, जब बादल बड़ी मात्रा में पानी के साथ आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वे अचानक फट पड़ते हैं। पानी इतनी तेज रफ्तार से गिरता है कि एक सीमित जगह पर कई लाख लीटर पानी एक साथ जमीन पर गिर पड़ता है, जिसके कारण उस क्षेत्र में बाढ़ आ जाती जिससे तबाही का माहौल पैदा हो जाता है। बादल फटने पर बादलों का पूरा पानी एक साथ पृथ्वी पर गिर पड़ता है। बादल फटने के कारण होने वाली बारिश लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में 2 सेंटीमीटर से अधिक बारिश हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है।
जानिए बादल फटने के कारण?
आखिर वह बाधा कौन सी है, जिसके कारण बादल अचानक फट पड़ते हैं? मौसम विज्ञानी बताते हैं कि हमारे देश में हर साल मॉनसून के समय पानी से भरे हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, जिनके लिए हिमालय पर्वत एक बड़े अवरोधक के रूप में आता है। इसीलिए आपने बादल फटने की ज्यादातर घटनाएं पहाड़ों की ही सुनी होंगी। इसके अतिरिक्त, ये बादल जरा सी भी गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाते। यदि गर्म हवा का झोंका उन्हें छू जाए, तो उनके फटने की आशंका बन जाती है। ऐसा ही मुंबई में 26 जुलाई 2005 को हुआ था, जब बादल किसी ठोस वस्तु से नहीं, बल्कि गर्म हवा से टकराए थे।
ये भी जानिए
आपको बता दें कि बादलों की आकृति और उनकी पृथ्वी से ऊंचाई के आधार पर इन्हें कई वर्गों में बांटा गया है। पहले आते हैं, लो क्लाउड्स। यानी ये पृथ्वी से ज्यादा नजदीक होते हैं। इनकी ऊंचाई लगभग ढाई किलोमीटर तक होती है। इनमें एक जैसे दिखने वाले भूरे रंग के बादल, कपास के ढेर जैसे कपासी, गरजने वाले काले रंग के रुई जैसे ((क्यूमलोनिंबस), भूरे-काले रंग के वर्षा वाले स्ट्रेट बादल और भूरे-सफेद रंग के स्ट्रेट-कपास जैसे बादल आते हैं। बादलों में दूसरा वर्ग है मध्य ऊंचाई वाले बादलों का। इनकी ऊंचाई 2:30 से 4:30 किमी तक होती है। इस वर्ग में दो तरह के बादल हैं आल्टोस्ट्राटस और आल्टोक्युमुलस। तीसरा वर्ग है उच्च मेघों का। इनकी ऊंचाई साढ़े चार किलोमीटर से ज्यादा रहती है। इस वर्ग में सफेद रंग के छोटे-छोटे साइरस बादल, लहरदार साइरोक्युमुलस और पारदर्शक रेशेयुक्त साइरोस्ट्राटस बादल आते हैं।
बादल फटने की घटना के लिए ये बादल होते हैं जिम्मेदार
आपको बता दें कि बादल फटने की घटना के लिए क्युमुलोनिंबस बादल जिम्मेदार हैं। देखने में तो ये खूबसूरत लगते हैं लेकिन ये उतने ही खतरनाक होते हैं। बता दें कि इनकी लंबाई 14 किलोमीटर तक होती है। आपको बता दें कि जब क्युमुलोनिंास बादलों में एकाएक नमी पहुंचनी बंद हो जाती है या कोई हवा का झोका उनमें प्रवेश कर जाता है, तो ये सफेद बादल गहरे काले रंग में बदल जाते हैं और तेज गरज के साथ तेजी से बरस पड़ते हैं। क्युमुलोनिंबस बादलों के बरसने की रफ्तार इतनी तेज होती है कि पानी का सैलाब आ जाता है जिसे बाढ़ कहा जा सकता है।