उत्तराखंड में परीक्षा देने वाली बाहरी महिलाओं को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। बाहरी राज्य की महिला अभ्यर्थी अब उत्तराखंड पीसीएस की मेन्स की परीक्षा नहीं दे पाएंगी। पीसीएस की मेन्स की परीक्षा की मेरिट में शामिल करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं बाहरी राज्य की महिला अभ्यर्थियों को राहत नहीं मिल पायी है।
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बाहरी राज्य की महिला अभ्यर्थियों को सुप्रीम कोर्ट से झटका
उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा की मेरिट में शामिल करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं बाहरी राज्य की महिला अभ्यर्थियों को राहत नहीं मिल पायी है। महिला अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। महिला अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की विशेष अनुग्रह याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य परीक्षा में शामिल होने का अनुरोध किया था।
बाहरी राज्य की महिला अभ्यर्थी नहीं दे पाएंगी पीसीएस मुख्य परीक्षा
इस मामले में कोर्ट ने यह कहकर एसएलपी का निपटारा कर दिया कि महिला क्षैतिज आरक्षण के लिए राज्य सरकार एक्ट बना चुकी है और एक्ट को उच्च न्यायालय में पहले ही चुनौती दी गई है। राज्य सरकार बनाम पवित्रा चौहान व अन्य के मामले में एसएलपी पर न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम व न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने सुनवाई की।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा उच्च न्यायालय ने राज्य की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर रोक लगा दी थी। कोर्ट का कहना था कि जिस मुख्य आधार पर उच्च न्यायालय ने अंतरिम रोक लगाई, वह यह थी कि सरकारी आदेश के माध्यम से ऐसा आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
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राज्य की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने की पैरवी
राज्य की ओर से इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की। उन्होंने कोर्ट में उत्तराखंड लोक सेवा महिलाओं के लिए अधिनियम 2022 की प्रति पेश की। आदेश में कहा गया था कि अधिनियम को राज्यपाल की अनुमति मिल चुकी है। इसका राजपत्रित प्रकाशन 10 जनवरी को हो चुका है।
इस अधिनियम को उच्च न्यायालय में चुनौती भी दी गई है। कोर्ट ने इस एसएलपी को यह कहकर खारिज कर दिया कि अब इसमें कुछ भी नहीं बचता है। और इस तरह कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया।