देहरादून- शिक्षकों की एक जमात ने सूबे की सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर इतनी कारारी चोट की, कि सरकार को कड़ा कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अगर वो जमात अपने बच्चों को भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाती। अपनी तालीम के तरीके से निजी स्कूलों को मात देती तो सूबे में आने वाली पीढ़ी की पीठ पर सरकारी मंशा का ये चाबुक न पड़ता। पढ़ाने को महज नौकरी मान लेने वाली सरकारी अध्यापकों की जमात की वजह से ही अब उत्तराखंड में सरकारी स्कूल बदहाल हुए है। सुगम-दुर्गम की परिभाषाएं तैयार हुई हैं और सरकार को इस सम्मानजनक पेशे को ठेकेदारी टाइप श्रेणी में लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
जबकि सूबे में माध्यमिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापकों और प्रवक्ताओं के 31059 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 2700 पदों को सरकार पहले ही खत्म कर चुकी है। जबकि बेसिक शिक्षा के 4000 से ज्यादा पदों को खत्म करने की तैयारी है। सरकार इस बुनियादी बात से वाकिफ़ हो चुकी है कि, जब सरकारी स्कूलों मे पढ़ने वाले हैं ही नहीं तो मोटी पगार पर सरकारी अध्यापक क्यों तैनात किया जाए और उनके वेतन भत्ते और पेंशन के बोझ के साथ साथ उनकी हड़ताल की धमकी का दबाव क्यों सहन किया जाए।
क्या कहा अरविंद पाण्डेय ने
भविष्य में सरकारी स्कूलों मे अध्यापक ठेके पर लेने के फैसले पर शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा भी है,”सरकार की मंशा है कि शिक्षा विभाग में आने वाले वक्त में शिक्षकों की नौकरियां अनुबंध के आधार पर दी जांए। इससे शिक्षा की गुणवत्ता में शिधार तो आयगा ही वहीं छोटी-छोटी बात पर शिक्षक संगठनों के आंदोलन जैसी समस्या नहीं रहेगी”
कितने हैं स्वीकृत पद
कुमाऊं मंडल में प्रवक्ता के 4902 पद स्वीकृत
सहायक अध्यापकों के 8508 पद स्वीकृत
गढ़वाल मंडल में प्रवक्ता के 6465 पद स्वीकृत
सहायक अध्यापकों के 11184 पद स्वीकृत
इसके अलावा बेसिक और जूनियर हाईस्कूलों मे 45000 पद स्वीकृत हैं। तय है कि अगर सब कुछ मंत्री जी की मंशा के मुताबिक हुआ तो इस सभी पदों पर तैनात अध्यापक कांट्रेक्ट के आधार पर अपनी सेवा देंगे। मतलब न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।