दिवाली के दिन जुआ खेला जाता है ये तो आपने सुना ही होगा। लेकिन दिवाली पर जुआ खेला क्यों जाता है क्या आप जानते हैं ? दिवाली पर जहां मां लक्ष्मी की पूजा, आराधना, जप, तप, हवन की परंपरा है तो फिर जुआ क्यों खेला जाता है और इसकी शुरूआत कब से हुई ? तो चलिए आज आपको बताते हैं क्यों दिवाली दिन खेलते हैं जुआ ?
दिवाली पर क्यों खेलते हैं जुआ ?
दिवाली का त्यौहार भारत में सबसे बड़ा त्यौहार है। इसे पूरे भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है। दिवाली पर जुआ खेलने की रस्म का शास्त्रों में भी उल्लेख है। ऐसा कहा जाता है कि दिवाली पर माता लक्ष्मी को खुश करने के लिए धन, धान्य, वैभव में वृद्धि हेतु अनेक जतन और पूजापाठ किए जाते। इन्हीं में से द्रुत क्रीड़ा यानी एक जुआ खेलना भी है। बता दें कि द्रुत कीड़ा को भारत के शास्त्रों और पुराणों में 64 कलाओं में स्थान दिया गया है। श्रीमद्भागवत महापुराण और ऋग्वेद सहित कई ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।
जानें कब और कैसे हुई इसकी शुरूआत ?
मान्यता है कि दिवाली पर जुए की शुरुआत शिव-पार्वती ने की थी। एक कथा के मुताबिक दीपावली के दिन मां पार्वती व भगवान शिव के बीच जुआ खेला गया था जिसमें मां पार्वती जीत गई। अपनी जीत से माता खुश थी और माता को देख भगवान शिव भी प्रसन्न हुए। तभी से दीवाली की संध्या पर जुआ खेलना शुभ माना गया और यहीं से इसकी शुरूआत हुई।
ऐसा कहा जाता है कि जुए के परिणाम से सालभर के शुभ-अशुभ फल का आंकलन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिस सदस्य की जीत होगी उसकी किस्मत सालभर चमकेगी। इसके साथ ही जुए से ये अंदाजा भी लगाया जाता है कि किसके हाथों से शुभ कार्य कराना है या कोई नई शुरुआत करना शुभ होगा।
मनोरंजन का भी अच्छा साधन माना जाता है जुआ
आजकल कई प्रकार के जुए खेले जाते हैं। कसीनो, कार्ड, गेम आदि के जरिए लगातार इसका क्रेज बढ़ता जा रहा है। कई परिवार इस से बर्बाद भी हो रहे हैं। आर्थिक नुकसान होने के कारण ये लोगों के दुखों का भी कारण बनता है।
जबकि वास्तव में ये खेल अपनी किस्मत आजमाने का और सालभर किस व्यक्ति के हाथों वर्ष भर शुभ कार्य किए जा सकते हैं इसका अंदाजा लगाने के लिए खेला जाता है और इसीलिए इसे शुभ माना जाता है। इसके साथ ही ये मनोरंजन का भी अच्छा साधन है। हालांकि ये तभी तक शुभ है जब तक किसी के लिए बड़ा आर्थिक नुकसान ना हो।