हल्द्वानी (योगेश शर्मा): राजनीति शह और मात का खेल है। इस खेल में जो खिलाड़ी जितना माहिर होगा, परिणाम उतना ही बेहतर मिलता है। आने वाले 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर भी उत्तराखंड में शह और मात का खेल जारी है। पिछले दिनों जब कांग्रेस नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव आर्य भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए तो पिछले 5 सालों से 2022 के विधानसभा चुनाव के लिहाज से तैयारी करने वाले प्रत्याशियों में काफी नाराजगी देखी गई।
महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व विधायक सरिता आर्य ने भी खासी नाराजगी जताई थी। उनके मुताबिक वे कांग्रेस में शामिल होने वाले नेताओं से नाराज नहीं है। लेकिन, आलाकमान को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की जिन विधानसभा सीटों पर पार्टी कार्यकर्ता पिछले 5 सालों से अपनी तैयारी में जुटे हुए हैं। उनकी जगह किसी और को टिकट देने पर विचार किया जाना चाहिए।
सरिता आर्या 2012 से 2017 तक नैनीताल विधानसभा सीट से कांग्रेसी विधायक रह चुकी हैं, पिछली बार पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य के बेटे संजीव आर्य ने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़कर कांग्रेस की सरिता आर्य को चुनाव हरा दिया, इस बार संजीव आर्य कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं और सरिता आर्य को अपना टिकट कटने का डर सता रहा है। यही हाल नैनीताल जिले की भीमताल विधानसभा सीट का है।
यहां से निर्दलीय विधायक राम सिंह कैड़ा भाजपा में शामिल हुए हैं। लिहाजा भाजपा कार्यकर्ता इस बात से खासे नाराज हुए थे। भीमताल से पूर्व विधायक गोविंद सिंह बिष्ट के मुताबिक भाजपा कार्यकर्ता इस बात से नाराज थे की पहले से तैयारी कर रहे सीनियर पार्टी कार्यकर्ताओं को टिकट दिया जाना चाहिए और किसी को भी पार्टी में टिकट देने की शर्त पर नहीं लिया जाना चाहिए। केवल पार्टी का कुनबा बढ़ाया जाना चाहिए।
उनके मुताबिक उन्होंने आलाकमान के आगे इस बात को रखा है कि विधानसभा सीट से उम्मीदवार तय करने के लिए सर्वे किया जाना चाहिए और जो प्रत्याशी सर्वे में आगे आता है उसी को टिकट दिया जाना चाहिए। उत्तराखंड में दलबदल की राजनीति के बाद कई सीटों पर चुनावी समीकरण बदलते जा रहे हैं। हालांकि कौन सा प्रत्याशी कहां से चुनाव लड़ेगा यह आलाकमान को तय करना है। लेकिन दलबदल की राजनीति के बीच उन लोगों को अपने टिकट कटने का डर सताने लगा है जो पिछले 5 सालों से चुनाव के मद्देनजर अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं।