सिल्क्यारा टनल मे हुए भूस्खल से 40 जिन्दगियां टनल के अन्दर फंसी है। जिन्हें बचाने के लिए रेस्क्यू आपरेशन युद्ध स्तर पर जारी है। सात दिन बीत जाने के बाद भी रेस्क्यू अभियान मे कुछ न कुछ बाधाएं उत्पन्न हो रही है। लेकिन स्थानीय लोग इसे हादसा ना बताकर दैवीय प्रकोप बता रहे हैं।
मंदिर तोड़ने से हुआ उत्तरकाशी में टनल हादसा
सिल्क्यारा टनल मे हुए भूस्खलन को जहां एक ओर हादसा बताया जा रहा है तो वहीं स्थानीय लोगों का कुछ और ही कहना है। स्थानीय लोगों का कहना है कि ये मंदिर तोड़ने के कारण हुआ है। सिल्क्यारा पट्टी के लोगों का आरोप है कि कार्यदायी कंपनी ने यहां के आराध्य देव बौखनाग की अनदेखी की है। जिसके कारण ये टनल हादसा हुआ है।
नाग देवता का प्रकोप टनल हादसा
ग्रामीणों का कहना है कि टनल के ठीक ऊपर बासुकी नागदेवता और ऊपर पहाड़ी पर बौखनाग देवता का मन्दिर है।बौखनाग के बारे में मान्यता है कि कोई भी कार्य करने से पहले इनके मंदिर में श्रीफल जरूर चढ़ाते हैं। यानी कि काम करने से पहले देवता की अनुमति लेनी जरूरी है वरना कार्य में बाधा उत्पन होती है।
इसी मान्यता के आधार पर यहां के स्थानीय लोगों का आरोप है कि कंपनी प्रशासन ने भगवान बौखनाग की अनदेखी की है। यहां कार्य कर रहे स्थानीय मजदूर बार-बार कम्पनी के जी एम को यहां एक छोटा सा मंदिर बनाने के लिए कहते आए हैं।
दुर्घटना के तीन दिन पहले ही हटाया गया था मंदिर
मजदूरों की मांग को देखते हुए यहां पर एक मंदिर बनाया गया था। लोगों का कहना है कि दुर्घटना के तीन दिन पहले ही टनल के बाहर खुदाई कर वहां मदिंर हटा दिया गया। जिसके कारण देवता के प्रकोप से ये हादसा हो गया। लोगों का मानना है कि ये देवता का ही आशीर्वाद है कि टनल मे फंसे मजदूरों की लाइफलाइन पानी का पाइप जिसके द्वारा उन्हें आक्सीजन भोजन एवं दवाईयां उपलब्ध कराई जा रही हैं। वरना इतना बड़ा भूस्खलन होने के बाद भी पाइप और मजदूर सुरक्षित हैं और उन्हें आंच तक नहीं आई।