आशीष तिवारी। उधमसिंह नगर में एनएच 74 के निर्माण में हुए मुआवजा घोटाले की सीबीआई जांच को सही ना बताने के केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के पत्र के बाद अब राज्य से लेकर केंद्र तक की बीजेपी सरकारों पर सवाल उठने लगे हैं। भष्टाचार से लड़ने की प्रतिबद्धता जताते हुए बनी त्रिवेंद्र रावत सरकार के लिए भी ये असहज करने वाला विषय है साथ ही प्रतिबद्धता को फिर साबित करने की चुनौती भी। त्रिवेंद्र रावत सरकार से सवाल हो सकता है कि जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयुद्ध की घोषणा पदभार ग्रहण के दौरान हुई थी वो युद्ध अब भी जारी है ना? कहीं ऐसा तो नहीं कि समय के साथ धर्मयुद्ध में विराम हो गया हो?
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अपनी शुरुआती प्रेस कॉन्फ्रेंस में त्रिवेंद्र रावत ने बेहद जोश के साथ इस बात का ऐलान किया था कि एनएच 74 के मुआवजा घोटाले की सीबीआई जांच कराई जाएगी। इस घोषणा को किए हुए तकरीबन दो महीने का समय बीत गया। इस दौरान सीबीआई की ओर से कोई खास तवज्जो नहीं दी गई। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक इसी बीच नितिन गडकरी के एक खत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को लिखा जिसमें उन्होंने इस मामले की सीबीआई जांच ना कराने की बात लिखी है। इस खत में नितिन गडकरी ने लिखा है कि अगर इस मामले की सीबीआई जांच कराई गई तो सरकारी अधिकारियों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
इस खत से कई बड़े सवाल खड़े होते हैं। अगर सरकारी अधिकारियों के मनोबल की ही बात है तो क्या त्रिवेंद्र रावत का मुआवजा घोटाले में सात अधिकारियों को सस्पेंड करना गलत था? अगर मनोबल गिरता है तो क्या मनमाना मुआवजा दिए जाने के कुचक्र को सही मान लिया जाए?
एनएच 74 के मुआवजा घोटाले के सामने आने की समय से इस बात की आशंका कई बार जताई जा चुकी है कि इस मामले में कुछ सफेदपोश भी शामिल हैं। खबर उत्तराखंड भी इस मसले पर आशंका जता चुका है कि सफेदपोश पर हाथ डालना सरकार के लिए मुश्किल होगी। कहीं ऐसा तो नहीं कि नितिन गडकरी का खत इसी कड़ी का हिस्सा हो। सरकारी अधिकारियों के मनोबल का हवाला देते हुए सफेदपोश करीबियों को बचाने की कोशिश हो रही हो। हो सकता है कि हमारा सोचना गलत हो लेकिन इस गलत सोच पर मुहर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को लगानी है।
इस बात में दो राय नहीं है कि एनएच निर्माण में मुआवजा देने में बंदरबांट हुई है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने खुद शुरुआती जांच पर मुहर लगाई है। कुमाऊं कमिश्नर डी सैंथिल पांडियन की जांच में भी ये स्पष्ट हो चुका है। ऐसे में अब इम्तिहान त्रिवेंद्र रावत का है। वो धर्मयुद्ध में अपनी पार्टी के ही एक वरिष्ठ नेता की बात मान लेते हैं या फिर महाभारत के भीष्म पर्व के इस श्लोक को याद कर आगे बढ़ते हैं –
न पुत्रः पितरं जज्ञे पिता वा पुत्रमौरसम्।
भ्राता भ्रातरं तत्र स्वस्रीयं न च मातुलः॥
अर्थात्, उस युद्ध में न पुत्र पिता को, न पिता पुत्र को, न भाई भाई को, न मामा भांजे को, न मित्र मित्र को पहचानता था’