राजस्थान का मेवाड़ पहले से ही काफी प्रभावशाली इलाका रहा है। इसकी वीरता, संघर्ष और गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में आपने कई कहानियां सुनी होंगी। हमेशा से ही ये भारतीय राजपूतों का अहम केंद्र रहा हैं। ये वो भूमि है जहां महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) जैसे वीर योद्धाओं ने घुसपैठियों से लड़कर इसकी रक्षा की थी। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ की आज उन्हीं के वंशज आपस में लड़ने लगे। यहां तक कि परिवार के बीच चल रही ये लड़ाई सड़क तक उतर आई। जो प्रताप के गौरवशाली अतीत को दफन कर रही है। चलिए इस आर्टिकल में विस्तार से इस बारे में जानते हैं।
उदयपुर के सिटी पैलेस के बाहर पथराव
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुई। जिसमें महाराणा के वंशजों के समर्थक और राजपूत समाज के लोग उदयपुर के सिटी पैलेस के बाहर सड़कों पर उतर आए। विवाद इतना बढ़ गया था कि समर्थक आपस में ही पथराव करने लगे। जिसके बाद पुलिस ने जैसे तैसे मामले को शांत किया। दरअसल महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच काफी समय से लड़ाई चल रही है। जिसकी वजह है, “गद्दी का उत्तराधिकारी।”
महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह का राजतिलक
उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य व पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बेटे विश्वराज सिंह (Vishwaraj Singh) को गद्दी पर बैठाने का फैसला लिया गया। 25 नंवबर को विश्वराज सिंह का राजतिलक हुआ। पुरानी प्रथा के मुताबिक, राजतिलक के बाद धूणी दर्शन किया जाता है। इसी के लिए विश्वराज सिंह पगड़ी-दस्तूर की रस्म के बाद सिटी पैलेस के धूणी स्थल पर जाने के लिए निकले।
विश्वराज के चाचा ताजपोशी के हैं खिलाफ
बता दें कि वर्तमान में जे सिटी पैलेस का संचालन है ले महेंद्र सिंह मेवाड़ के छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ और उनके बेट लक्ष्यराज सिंह कर रहे हैं। विश्वराज के चाचा अरविंद सिंह ने इस ताजपोशी को गैरकानूनी मानते हुए इस प्रथा को बीच में रोकने के लिए सिटी पैलेस के गेट बंद कर दिए। जिसके चलते विश्वराज धूणी दर्शन नहीं कर पाए। इसी वजह से ये परमपरा अधूरी रह गई। यहीं से दोनों पक्षों में लड़ाई शुरू हुई और सालों से चल रहा पारिवारिक विवाद सड़क पर आ गया।
सालों से परिवार के बीच चल रहा विवाद
मेवाड़ में महाराणा प्रताप और उनके वंशजों ने राज किया। लेकिन आज भी मेवाड़ में राजघराने के सदस्य गद्दी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सवाल ये है कि असली उत्तराधिकारी कौन है? और क्यों इस गद्दी को लेकर आज भी लड़ाई हो रही है। चलिए जानते है कि सालों से राजपरिवार में किस बात को लेकर विवाद चल रहा है जिसकी लड़ाई आज भी जारी है।
मेवाड़ राजघराने की फैमली ट्री
दरअसल ये विवाद मेवाड़ की संपत्ति से जुड़ा है। ये लड़ाई तब की है जब मेवाड़ की गद्दी (Mewar) में विश्वराज के दादा भगवत सिंह विराजमान थे। चूंकि आजादी के बाद राजशाही खत्म हो गई तो वो ही मेवाड़ के अतिंम महाराणा रहे। मेवाड़ राजघराने के फैमली ट्री की बात करें तो महाराणा प्रताप के बाद इस वंश के 21 राजा बने। उन्हीं में से आखिरी महाराणा थे भगवत सिंह।
भगवत सिंह की तीन संतानें थी। बड़े बेटे महेंद्र मेवाड़, बेटी योगेश्वरी और छोटे बेटे अरविंद मेवाड़। महेंद्र मेवाड़ के बेटे हैं विश्वराज सिंह और छोटे बेटे अरविंद के बेटे हैं लक्ष्यराज सिंह।
यहां से शुरू हुआ संपत्ति का ये पूरा विवाद
राजशाही खत्म होने के बाद भगवत सिंह ने संपत्ति को बेचना और लीज पर देना शुरू कर दिया। ये बात उनके बड़े बेटे महेंद को पसंद नहीं आई। जिसके चलते वो अपने पिता के खिलाफ कोर्ट चले गए। और यहीं से शुरु हुआ ये पूरा विवाद।
इसी से नाराज होकर भगवत सिंह ने ‘महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन’ नाम का ट्रस्ट बनाया। इस ट्रस्ट की जिम्मेदारी अपने छोटे बेट अरविंद सिंह को दी। तो वहीं अपने बड़े बेटे महेंद्र सिंह को मेवाड़ की प्रॉपर्टी और ट्रस्ट से बाहर कर दिया। जिसके बाद से ही अरविंद और उनके पुत्र लक्ष्यराज राजघराने को आधिकारिक रूप से चलाते आ रहे हैं। लेकिन बड़े बेटे के नाते महेंद्र सिंह हमेशा से ही राजघराने की गद्दी पर अपना दावा करते रहे।
लक्ष्यराज सिंह है मेवाड़ की गद्दी के असली हकदार ?
यहीं वजह है कि उनके निधन के बाद उनके बेटे विश्वराज सिंह को राजघरानों के समर्थन से 25 नवंबर को राजतिलक कर महाराणा घोषित किया गया। वहीं अरविंद सिंह ट्रस्ट चलाते हैं तो इस नाते से उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह इस ट्रस्ट की जिम्मेदारी संभालेंगे। क्योंकि इसी ट्रस्ट के जरिए राजघराना चलाया जाता है। इसलिए अरविंद सिंह का दावा है कि उनका बेटा लक्ष्यराज सिंह ही मेवाड़ की गद्दी के असली हकदार है।
अब तक नहीं सुलझ पाया है पारिवारिक झगड़ा
महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद अब राजगद्दी के लिए एक बार फिर से मेवाड़ की सियासत तेज हो गई है। हालांकि तीन दिन तक चले इस विवाद के बाद विश्वराज ने प्रशासन की मदद से धूनी के दर्शन कर लिए। लेकिन तीन-चार दशकों से चल रहा ये पुराना पारिवारिक झगड़ा अब भी सुलझ नहीं पाया है।